Book Title: Jambudwip Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 490
________________ सप्तम् वक्षस्कार - संख्या-तारतम्य ४७३ oC भावार्थ - हे भगवन्! चंद्रविमान में देवों की कालस्थिति कितनी बतलाई गई है? __ हे गौतम! चन्द्रविमान में देवों की स्थिति कम से कम - पल्योपम तथा अधिकतम एक पल्योपम से एक लाख वर्ष ज्यादा बतलाई गई है। चन्द्रविमान में देवियों की कालस्थिति न्यूनतम - पल्योपम तथा अधिकतम आधे पल्योपम से ५०,००० वर्ष ज्यादा बतलाई गई है। सूर्यविमान में देवों की कालस्थिति न्यूनतम - पल्योपम तथा अधिकतम एक पल्योपम से एक हजार वर्ष ज्यादा बतलाई गई है। सूर्यविमान में देवियों की स्थिति न्यूनतम - पल्योपम तथा अधिकतम अर्द्धपल्योपम से ५०० वर्ष ज्यादा बतलाई गई है। ग्रंहविमान में देवों की न्यूनतम स्थिति - पल्योपम तथा अधिकतम एक पल्योपम कही गई है। ग्रहविमान में देवियों की स्थिति अल्पतम - पल्योपम तथा उत्कृष्टतम अर्द्धपल्योपम कही गई है। नक्षत्र विमानों में देवों की स्थिति जघन्यतः - पल्योपम तथा ज्यादा से ज्यादा अर्द्धपल्योपम आख्यात हुई है। यहाँ देवियों की जघन्यतः , पल्योपम तथा उत्कृष्टः - पल्योपम से कुछ अधिक होती है। ताराविमान में देवों की स्थिति जघन्यतः : पल्योपम तथा उत्कृष्टतः ३ पल्योपम होती है। यहाँ देवियों की स्थिति न्यूनतम - पल्योपम तथा उत्कृष्टतः - पल्योपम से कुछ अधिक होती है। संख्या-तारतम्य .. (२०७) . एएसि णं भंते! चंदिमसूरियगहमणणक्खत्ततारारूवाणं कयरे-कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498