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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र
जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे कालओ केवचिरं होई?
गोयमा ! ण कयावि णासि ण कयावि णत्थि ण कयावि ण भविस्सइ भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे णिइए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे जम्बुद्दीवे दीवे पण्णत्ते इति ।
शब्दार्थ - सिय- स्यात् - कथंचित् ।
भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप क्या शाश्वत है या अशाश्वत है ?
हे गौतम! जंबूद्वीप कथंचित् शाश्वत है, कथंचित् अशाश्वत ।
हे भगवन्! वह शाश्वत एवं अशाश्वत - दोनों कैसे कहा गया है?
हे गौतम! द्रव्यत्व रूप से शाश्वत है तथा वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श पर्याय की अपेक्षा से (पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से) अशाश्वत है।
हे गौतम! इसी कारण वह स्यात् शाश्वत एवं स्यात् अशाश्वत कहा गया है।
हे भगवन्! जंबूद्वीप की स्थिति काल की अपेक्षा से कियत्कालिक है ?
हे गौतम! वह भूतकाल में न था, वर्तमान में नहीं है, भविष्य में नहीं होगा, ऐसा नहीं है। वह अतीत में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा ।
जंबूद्वीप ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित एवं नित्य परिज्ञापित हुआ है। जंबूद्वीप का स्वरूप
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जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे किं पुढविपरिणामे आउपरिणामे जीवपरिणामे पोग्गलपरिणामे ?
गोयमा! पुढविपरिणामेवि आउपरिणामेवि जीवपरिणामेवि पुग्गलपरिणामेवि । जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे सव्वपाणा सव्वजीवा सव्वभूया सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए आउकाइयत्ताए तेउकाइयत्ताए वाउकाइयत्ताए वणस्सइकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा ?
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