Book Title: Jambudwip Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 432
________________ सप्तम् वक्षस्कार - चन्द्रमंडल : विस्तार ४१५ गोयमा! णवणउई जोयणसहस्साई सत्त य बारसुत्तरे जोयणसए एगावण्णं च एगसहिभागे जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता एगं चुण्णियाभागं आयामविक्खम्भेणं तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस जोयणसहस्साई तिण्णि य एगूणवीसे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। अन्भंतरतच्चे णं जाव प०? गोयमा! णवणउई जोयणसहस्साई सत्त य पंचासीए जोयणसए इगतालीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता दोण्णि य चुण्णियाभाए आयामविक्खम्भेणं तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं पण्णरस जोयणसहस्साइं पंच य इगुणापण्णे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणंति, एवं खलु एएणं उवाएणं णिक्खममाणे चंदे जाव संकममाणे २ बावत्तरि २ जोयणाई एगावण्णं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता एगं च चुण्णियामागं एगमेगे मंडले विक्खम्भवुद्धिं अभिवड्डेमाणे २ दो दो तीसाइं जोयणसयाई परिरयबुद्धिं अभिवड्ढेमाणे २ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। सव्वबाहिरए णं भंते! चंदमंडले केवइयं आयामविक्खम्भेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते? गोयमा! एगं जोयणसयसहस्सं छच्चसट्टे जोयणसए आयामविक्खम्भेणं तिण्णि य जोयणसयसहस्साइं अट्ठारस सहस्साई तिण्णि य पण्णरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं। ___ बाहिराणंतरे णं पुच्छा, गोयमा! एगं जोयणसयसहस्सं पंच सत्तासीए जोयणसए णव य एगसटिभाए जोयणस्स एगसहिभागं च सत्तहा छेत्ता छ चुण्णियाभाए आयामविक्खम्भेणं तिण्णि य जोयणसयसहस्साई अट्ठारस सहस्साई पंचासीई च जोयणाई परिक्खेवेणं। ___बाहिरतच्चे णं भंते! चंदमंडले० पण्णते? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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