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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
वणिज सत्तमीए दिवा विट्ठी राओ बवं अट्ठमीए दिवा बालवं राओ कोलवं णवमीए दिवा थीविलोयणं राओ गराइ दसमीए दिवा वणिजं राओ विट्ठी एक्कारसीए दिवा बवं राओ बालवं बारसीए दिवा कोलवं राओ थीविलोयणं तेरसीए दिवा गराइ राओ वणिजं चउद्दसीए दिवा विट्ठी राओ सउणी अमावासाए दिवा चउप्पयं राओ णागं सुक्कपक्खस्स पाडिवए दिवा किंथुग्धं करणं भवइ।
भावार्थ - हे भगवन्! करण कितने आख्यात हुए हैं? हे गौतम! वे ग्यारह कहे गए हैं।
१. बव २. बालव ३. कौलव ४. स्त्री विलोचन ५ गरादि ६. वणिज ७. विष्टि ८. शकुनी ६. चतुष्पद १०. नाग और ११. किंस्तुघ्न।
हे भगवन्! इन ग्यारह करणों में कितने करण चर एवं कितने करण स्थिर - अचर कहे गए हैं? हे गौतम! इसमें सात चर एवं चार स्थिर - अचर कहे गए हैं। बव, बालव, कौलव, स्त्री विलोचन, गरादि, वणिज तथा विष्टि - ये सात करण चर कहे गए हैं। . शकुनी, चतुष्पद, नाग एवं किंस्तुघ्न - ये चार स्थित कहे गये हैं। हे भगवन्! ये चर एवं स्थिर करण कब-कब होते हैं?
हे गौतम! शुक्लपक्ष की प्रतिपदा की रात्रि में बव करण होता है। द्वितीया को दिन में बालव करण, रात्रि में कौलव करण होता है। तृतीया को दिन में स्त्री विलोचन करण होता है तथा रात्रि में गरादि करण होता है। चतुर्थी को दिन में वणिज करण और रात्रि में विष्टि करण होता है। पंचमी को दिन में बव करण तथा रात्रि में बालव करण होता है। षष्ठी को दिन में कौलव करण और रात्रि में स्त्री विलोचन करण होता है। सप्तमी को दिन में गरादि करण तथा रात्रि में वणिज करण होता है। अष्टमी को दिन में विष्टि करण तथा रात्रि में बव करण होता है। नवमी को दिन में बालव करण और रात्रि में कौलव करण होता है। दशमी को दिन में स्त्री विलोचन करण तथा रात्रि में गरादि करण होता है। एकादशी के दिन में वणिज करण एवं रात्रि में विष्टि करण होता है। द्वादशी को दिन में बव करण तथा रात्रि में बालव करण होता है। त्रयोदशी को दिन में कौलव करण एवं रात्रि में स्त्रीविलोचन करण होता है। चतुर्दशी को दिन में गरादि करण एवं रात्रि में वणिज करण होता है। पूर्णिमा को दिन में विष्टि करण एवं रात्रि में बव करण होता है।
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