Book Title: Jambudwip Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 472
________________ सप्तम् वक्षस्कार - मास समापक नक्षत्र ४५५ हे भगवन्! वर्षाकाल में द्वितीय भाद्रपद मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं? हे गौतम! धनिष्ठा, शतभिषक, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद - ये चार नक्षत्र उसे परिसमाप्त करते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र चवदह, शतभिषक सात, पूर्व भाद्रपदा आठ तथा उत्तर भाद्रपदा एक दिन-रात समाप्त करते हैं। उस मास में सूर्य आठ अंगुल अधिक पुरुष छाया प्रमाण अनुपर्यटन करता है। मास के अंतिम दिन पुरुष छाया प्रमाण दो पद से आठ अंगुल अधिक होता है। हे भगवन्! वर्षाकाल में तृतीय - आश्विन मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं? हे गौतम! उसे उत्तरभाद्रपदा, रेवती एवं अश्विनी - ये तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं। उत्तर भाद्रपदा चवदह, रेवती पन्द्रह तथा अश्विनी नक्षत्र एक रात-दिन परिसमाप्त करता है। . उस मास में सूर्य पुरुष छाया प्रमाण से बारह अंगुल अधिक परिभ्रमण करता है। उस मास के अन्तिम दिन पूरे तीन पद पुरुष छाया प्रमाण पोरसी होती है। हे भगवन्! वर्षाकाल के चतुर्थ मास-कार्तिक के परिसमापन में कितने नक्षत्र रहते हैं? हे गौतम! अश्विनी, भरणी एवं कृतिका - ये तीन नक्षत्र रहते हैं। . अश्विनी नक्षत्र चवदह रात्रि दिवस का परिसमापन करता है। भरणी नक्षत्र पन्द्रह रात्रि दिवस परिसमाप्त करता है। कृत्रिका नक्षत्र एक रात्रि-दिवस परिसमाप्त करता है। उस मास में सूर्य पुरुष छाया प्रमाण से सोलह अंगुल अधिक परिभ्रमण करता है। उस मास के अन्तिम दिन • तीन पद पुरुष छाया प्रमाण से चार अंगुल अधिक पोरसी होती है। ... हे. भगवन्! चातुर्मास हेमन्तकाल के प्रथम मास - मार्गशीर्ष को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं? . हे गौतम! कृत्तिका, रोहिणी एवं मृगशिर - ये तीन नक्षत्र उसे परिसमाप्त करते हैं। कृत्तिका नक्षत्र चवदह दिन-रात, रोहिणी पन्द्रह दिन-रात एवं मृगशिर नक्षत्र एक दिन-रात परिसमापन करता है। उस मास में सूर्य एक पुरुष छाया प्रमाण से बीस अंगुल ज्यादा अनुपर्यटन करता है। उस मास के अन्तिम दिन तीन पद पुरुष छाया प्रमाण से आठ अंगुल अधिक पोरसी होती है। हे भगवन्! हेमंतकाल के द्वितीय मास - पौष को कितने नक्षत्र परिसम्पन्न करते हैं? हे गौतम! उसे चार नक्षत्र - मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु एवं पुष्य परिसम्पन्न करते हैं। मृगशिर चवदह रात्रि दिवस तथा आर्द्रा आठ रात्रि दिवस, पुनर्वसु सात रात्रि दिवस तथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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