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प्रज्ञप्ति सू
में
सुला देता है । फिर वह तीर्थंकर सदृश प्रतिरूपक शिशु की विकुर्वणा करता है। उसे तीर्थंकर की माता के पार्श्व में लिटा देता है । शक्रेन्द्र फिर पांच शक्र विकुर्वित करता है - वह स्वयं पांच शक्रों में परिवर्तित हो जाता है। एक शक्र भगवान् तीर्थंकर को अपने करसंपुट द्वारा गृहीत करता है, दूसरा पीछे छत्र ताने रहता है। दो शक्र दोनों और चंवर डुलाते हैं तथा एक हाथ में वज्र लिए आगे चलता है।
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तत्पश्चात् देवेन्द्र, देवराज शक्र दूसरे बहुत से भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक देवों एवं देवियों से संपरिवृत होता हुआ यावत् विपुल वाद्य ध्वनिपूर्वक उत्कृष्टं यावत् देवगति से चलता हुआ-मंदर पर्वत पंडकवन स्थित अभिषेक शिला एवं अभिषेक सिंहासन के निकट आता है । पूर्वाभिमुख होकर सिंहासनासीन होता है ।
ईशान आदि इन्द्रों का आगमन
(१५१)
तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणें सुरिंदे उत्तरढलोगहिवई अट्ठावीसविमाणवाससयसहस्साहिवई अरयंबरवत्थधरे एवं जहा सक्के इमं णाणत्तं महाघोसा घण्टा लहुपरक्कमो पायत्ताणियाहिवई पुप्फओ विमाणकारी दक्खिणे णिज्जाणमग्गे उत्तरपुरत्थिमिल्लो रइकरगपव्वओ मंदरे समोसरिओ जाव पज्जुवासइत्ति, एवं अवसिट्ठावि इंदा भाणियव्वा जाव अच्चुओत्ति, इमं णाणत्तं
चउरासीइ असीई बावत्तरि सत्तरी य सट्ठी य ।
पण्णा चत्तालीसा तीसा वीसा दस सहस्सा ॥ १ ॥
एए सामाणियाणं, बत्तीसट्ठावीसा बारसट्ठ चउरो सय सहस्सा । पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥ १ ॥ आणयपाणय कप्पे चत्तारि सयाऽऽरणच्चुए तिण्णि । एए विमाणाणं, इमे जाणविमाणकारी देवा, तंजहा - पालय १ पुप्फे य २ सोमणसे ३ सिरिवच्छे य ४ णंदियावत्ते ५ । कामगमे ६ पीइगमे ७ मणोरमे ८ विमल 8 सव्वओभद्दे १० ॥ १ ॥
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