Book Title: Jambudwip Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 424
________________ सप्तम् वक्षस्कार - ज्योतिष्क देवों की स्थिति एवं वैशिष्टय ४०७ हे गौतम! ऊर्ध्वभाग में १०० योजन क्षेत्र अधोभाग में १८०० योजन क्षेत्र तथा तिर्यक् क्षेत्र में ४७२६३१० योजन क्षेत्र को अपने तेज से परिव्याप्त करते हैं। ज्योतिष्क देवों की स्थिति एवं वैशिष्टय (१७३) अंतो णं भंते! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्डोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोंववण्णगा चारट्टिइया गइरइया गइसमावण्णगा? . गोयमा! अंतो णं माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसूरिय जाव तारारूवा ते णं देवा णो उड्डोववण्णगा णो कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा णो चारहिइया गइरइया गइसमावण्णगा उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिएहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं साहस्सियाहिं वेउब्वियाहिं बाहिराहिं परिसाहिं महया हयणगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहणायबोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वयरायं पयाहिणावत्तमण्डलचारं मेरुं अणुपरियटुंति। ___भावार्थ - हे भगवन्! मानुषोत्तर पर्वतवर्ती चन्द्रमा, सूरज, ग्रह, नक्षत्र एवं तारे-ये ज्योतिष्क देव क्या ऊोपपन्न हैं - सौधर्म आदि बारह कल्पों से ऊपर ग्रैवेयक तथा अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हैं, क्या कल्पोपपन्न हैं, क्या विमानोपपन्न हैं, क्या चारोपपन्न हैं अथवा क्या वे चार स्थितिक - परिभ्रमण रहित, गतिरतिक - गति में आसक्ति युक्त, गति समापन्न - गति युक्त हैं? - हे गौतम! मानुषोत्तर गतिवर्ती चन्द्रमा सूरज यावत् तारे - ये ज्योतिष्क देव ऊोपपन्न एवं कल्पोपपन्न नहीं हैं। वे विमानोपपन्न एवं चारोपपन्न हैं। चार स्थितिक नहीं है। वे गति रतिक एवं गति समापन्न हैं। ऊर्ध्वमुखी कदंब के फूल के आकार में संस्थित हजारों योजनों तक चन्द्र-सूर्य की अपेक्षा से ताप क्षेत्र युक्त, वैक्रिय लब्धि सहित है। वैक्रियलब्धि द्वारा वे बाह्य परिषदों एवं वृहद रूप में नाट्य, गीत, वाद्य, तंत्री, ताल, त्रुटित, घन, मृदंग - इन गाजों बाजों से उत्पन्न मधुर ध्वनि के बीच दिव्य भोगों को भोगते हुए उत्कृष्ट आवाज में सिंहनाद के साथ, कलकल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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