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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
शब्दार्थ - पच्चुवसमंति - प्रत्युपशांत-उपरत होते हैं।
भावार्थ - उस काल, उस समय ऊर्ध्वलोक निवासिनी, महिमामयी मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, सुवत्सा, वत्समित्रा, वारिषेणा, बलाहका संज्ञक आठ दिक्कुमारिकाओं के जो अपनों कूटों पर अपने भवनों में, श्रेष्ठ प्रासादों में, अपने चार सहस्त्र सामानिक देवों के साथ यावत् पूर्व वर्णित सुखोपभोग में अभिरत थीं। प्रत्येक के आसन चलित हुए। एतद्विषयक वर्णन पूर्ववत् योजनीय है यावत् उन्होंने तीर्थंकर की माता से कहा - देवानुप्रिये! हम ऊर्ध्वलोकवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं भगवान् तीर्थंकर का जन्म महोत्सव आयोजित करेंगी। अतः आप भयभीत मत होना। इस प्रकार कहकर वे उत्तर-पूर्व दिशा भाग में - ईशान कोण में जाती हैं यावत् आकाश में बादलों की विकुर्वणा करती हैं यावत् जल वर्षण द्वारा उस स्थान की धूल जम जाती है, नष्ट हो जाती है, प्रशान्त हो जाती है, उपशांत हो जाती है। ऐसा होने पर वे उपरत होती है।
- ऐसा कर वे पुष्प मेघों द्वारा पुष्पवर्षा करती है यावत् काले अगर, उत्तम कुंदरुक्क आदि द्वारा उस स्थान को सुगंधित बना देती हैं। यावत् उसे देवताओं के अभिगमन योग्य बना देती है। वैसा कर भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता के निकट आती हैं यावत् विविध रूप में आगानपरिगान करती हुईं स्थित होती हैं। रुचकवासिनी दिक्कुमारिकाओं द्वारा उत्सव
(१४७) तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं २ कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तंजहागाहा - णंदुत्तरा य १, णंदा २, आणंदा ३, णंदिवद्धणा ४।
विजया य ५, वेजयंती ६, जयंती ७, अपराजिया ८॥१॥ सेसं तं चेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिक? भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य पुरथिमेणं आयंसहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति। तेणं कालेणं तेणं समएणं दाहिणरुयगवत्थव्वाओ अट्ट दिसाकुमारी' महत्तरियाओ तहेव जाव विहरंति, तंजहा
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