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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
प्रस्तुत सूत्र में सौ शिल्पों की ओर संकेत किया गया है। इस संदर्भ में ज्ञातव्य है कि शिल्प के मूलतः पांच भेद हैं -
१. कुंभकृत - शिल्प-घट आदि बर्तन बनाने की कला, २. चित्र कृत - शिल्प-चित्रकला, ३. लोहकृत-शिल्प - शस्त्र आदि लोहे की वस्तुएँ बनाने की कला, ४. तन्तुवाय-शिल्प - वस्त्र बुनने की कला तथा
५. नापित-शिल्प - क्षौरकर्म-कला। प्रत्येक के बीस-बीस भेद माने गये हैं, यो सब. मिला कर सौ होते हैं।
केवल्य : संघ-स्थापना .
(३८) . उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरसाहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए। जप्पभिई च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तप्पभिई च णं उसभे अरहा कोसलिए णिच्चं वोसट्ठकाए, चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तंजहा - दिव्वा वा जाव पडिलोमा वा, अणुलोमा वा, तत्थ पडिलोमा वित्तेण वा, जाव कसेण वा काए आउटेज्जा, अणुलोमा वंदेज्ज वा णमंसेज वा जाव पज्जुवासेज्ज वा, ते सव्वे सम्म सहइ जाव अहियासेइ। ____ तए णं से भगवं समणे जाए, ईरियासमिए जाव पारिट्ठावणियासमिए, मणसमिए, वयसमिए, कायसमिए, मणगुत्ते, जाव गुत्तबंभयारी, अकोहे, जाव अलोहे, संते, पसंते, उवसंते, परिणिव्वुडे, छिण्णसोए, णिरुवलेवे, संखमिव णिरंजणे, जच्चकणगं व जायरूवे, आदरिसपडिभागे इव पागडभावे, कुम्मो इव गुत्तिदिए, पुक्खरपत्तमिव णिरुवलेवे, गगणमिव णिरालंबणे, अणिले इव णिरालए, चंदो इव सोमदंसणे, सूरो इव तेयंसी, विहगो इव अपडिबद्धगामी, सागरो इव गंभीरे, मंदरो इव अकंपे, पुढवीविव सव्वफासविसहे, जीवो विव अप्पडिहयग-इत्ति। णत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे।
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