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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र **-*-*-*-*-*-*-*-*-*-12-08-10-19-10-19-10-08-10-19-19-19-19-10-28-02-10-04-10-08-2-10-04-28-10-19-12-09-08-10-02-02 हैं। वे ऊँचाई में अनेक धनुष प्रमाण होते हैं। कम से कम पूर्ण कोटि का आयुष्य भोग कर कतिपय नरक गति में यावत् कतिपय देवगति में जाते हैं तथा कतिपय सिद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं।
उस काल में अर्हत् वंश, चक्रवर्ती वंश तथा दशार वंश-ये तीन वंश उत्पन्न होते हैं। उस समय तेवीस तीर्थंकर, ग्यारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव एवं नौ वासुदेव उत्पन्न होते हैं। अवसर्पिणी का दुषमा आरक
(४५) तीसे णं समाए एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव परिहाणीए परिहायमाणे २ एत्थ णं दूसमा णामं समाकाले पडिवजिस्सइ समणाउसो!।
तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ?
गोयमा! बहसमरमणिजे भूमिभागे भविस्सइ से जहाणामए-आलिंगपुक्खरेड वा मुइंगपुक्खरेइ वा जाव णाणामणिपंचवण्णेहिं कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव।
तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते?
गोयमा! तेसिं मणुयाणं छव्विहे संघयणे छव्विहे संठाणे बहुईओ रयणीओ उद्धं उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउयं पालेंति २ त्ता अप्पेगइया णिरयगामी जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति, तीसे णं समाए पच्छिमे तिभागे गणधम्मे पासंडधम्मे रायधम्मे जायतेए धम्मचरणे य वोच्छिजिस्सइ।
शब्दार्थ- उ - ऊँचाई, साइरेगं - अधिकता सहित, वोच्छिजिस्सई - विच्छिन्न हो जाते हैं।
भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! उस समय-चौथे आरे के समय बयालीस सहस्त्र वर्ष कम एक सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल व्यतीत होने पर अवसर्पिणी काल का दुःषमा संज्ञक आरक शुरू होता है। उस काल में अनन्त वर्ण पर्याय यावत् क्रमशः ह्रासोन्मुख होते जाते हैं।
हे भगवन्! उस काल में भरतक्षेत्र का आकार-प्रकार किस तरह का होता है?
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