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प्रज्ञप्ति सूत्र
खच्चरों द्वारा वहनीय बग्घी, शिविका - पर्देदार पालखी, स्यंदमानिका - पुरुष प्रमाण पालखी इनका प्रयोग होता था ।
अस्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे गावीइ वा, महिसीइ वा, अयाइ वा, एलगाइ वा ?
हंता अस्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ।
भावार्थ - हे भगवन् ! उस समय में क्या भरत क्षेत्र में गाय, भैंस, बकरी, भेड़ घरेलू पशु होते हैं?
हाँ गौतम! ये पशु होते तो हैं, किन्तु उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते।
गोणाई वा, गवयाइ वा वराहाइ वा, रुरुत्ति वा, गोकण्णाइ वा ?
अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे आसाइ वा, हत्थीइ वा, उट्टाइ वा, अयाइ वा, एलगाइ वा, पसयाइ वा, मियाइ वा, सरभाइ वा चमराइ वा, सबराइ वा, कुरंगाइ वा,
हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति । भावार्थ - हे भगवन्! क्या उस समय भरत क्षेत्र में अश्व, उष्ट्र, हस्ती, गाय, गवय-नील गाय, बकरी, भेड़, प्रश्रय, मृग, शूकर, रूरू, संज्ञक मृग विशेष, अष्टापद ( शरभ ), चमरीगायसघन, कोमल पुच्छ युक्त पशु, सांभर, कुरंग तथा गोकर्ण होते हैं ?
हाँ गौतम! ये होते तो हैं किन्तु वे मनुष्य उनको उपयोग में नहीं लेते।
अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे सीहाइ वा, वग्घाइ वा, विगदीविग - अच्छतरच्छसियालबिडालसुणगकोकंतियकोलसुणगाइ वा ?
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हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेयं वा उप्पाएंति, पगइभद्दया णं ते सावयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! |
भावार्थ - हे भगवन्! क्या उस समय भरत क्षेत्र में शेर, बाघ, भेड़िये, चीते, रींछ, तरक्षव्याघ्रविशेष, गीदड़, बिलाव, कुत्ते, लोमड़ी, कोलशुनक - जंगली कुत्ते या सूअर ये श्वापद होते हैं ?
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आयुष्मन्ं श्रमण गौतम! ये सब होते तो हैं किन्तु उस काल के मनुष्यों को न थोड़ी ही और न अधिक बाधा ही पहुँचाते हैं और न उनका अंगभंग ही करते हैं और न चमड़ी को नोचकर उन्हें विकृत ही बनाते हैं क्योंकि वे प्रकृति से भद्र होते हैं ।
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