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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व माँ से भी न मिला होगा। जब जैनेन्द्रकुमार छोटे थे, तब उनकी बड़ी बहन उनके लिये अपने खिलौने और अपनी खाने-पीने की चीजें ऐसे ही सेंत कर रखती थीं, जैसे माँ बेटे के लिये । इन बहनों की शादी बड़ी होते हुये भी इसलिये न हो पाई थी कि वह हमेशा अपनी नानी के पास रहीं और उनकी नानी बहुत छोटी उम्र की शादी के खिलाफ थीं। हाँ, छोटी बहन की शादी उन्हीं दिनों हुई थी, जब जैनेन्द्र कुमार सोहर में थे।
__ जैनेन्द्र कुमार पर बाहरी असर जितना माँ और मामा का है, उतना ही असर उनकी बड़ी बहन का भी है । उनकी बड़ी बहन आज जीवित हैं और ५० से ऊपर होते हुए भी बालकों जैसा स्वभाव रखती हैं । हो सकता है जैनेन्द्रकुमार ने अपनी बड़ी बहन से बहुत कुछ लिया हो।
हमारा यह स्याल है कि जो आदमी बचपन में जितना भोला होता है, उतना ही बड़ेपन में उसे होशियार होना चाहिए । असल में भोलापन माने-सच और झूठ में भेद न करना, सभी को सच समझना और हर सीख को लेने के लिए तैयार रहना । ऐसे भोले बालकों के साथ कोई आदमी धोखेबाजी करके उनको वेहद बुरा बना सकता है और अगर वही बालक किसी भले आदमी के पाले पड़ जाए तो बहुत भला बन सकता है । अब जैनेन्द्रकुमार के बचपन के भोलेपन का कुछ हाल सुनिये।
एक बार बाल-जनेन्द्र को जोर का पेशाब लगा। माँ और मामी दोनों ही घरेलू काम में इतनी लगी हुई थीं कि एक-दो बार तो इनकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया गया कि यह क्या कह रहे हैं, और जब ध्यान दिया तो व्यंग और गुस्से से भरा हुआ । बाल जनेन्द्र ने पूछा
अम्मा मुत्ती कहां करूं ? कर ले चूल्हे में।
बाल-जैनेन्द्र को व्यंग और गुस्से से क्या लेना। वह सीधे चूल्हे पर पहुंचे और बड़े आराम के साथ पेशाब कर पाये । मामी ने देखा तो हंस पड़ीं और उन्हें पकड़ कर अपनी जीजी यानी उनकी माँ के पास ले गई । वह भी यह सब सुन कर हँस दीं। इन्हें गले लगाया और कुछ समझा दिया। मामला यहीं तक न रहा । जब उनके मामा घर आये तो उनकी माँ ने शिकायत की, शिकायत में उनसे यह कहा कि देखो इसने आज चूल्हे में पेशाब कर दिया। उन्होंने ज्यादह पूछताछ तो की नहीं, उनके एक चपत जड़ दिया। यह थोड़े से रोये, उसके बाद फिर चूल्हे में पेशाब करने की बात उन्हें कभी न जंची और कभी माँ या मामी के धोखे में न आये।
मामा को यह बहुत प्यारे थे । मामा ने प्यार में इनका नाम बंदर रख छोड़ा