Book Title: Jainendra Vyaktitva aur Krutitva
Author(s): Satyaprakash Milind
Publisher: Surya Prakashan Delhi

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Page 266
________________ २५० जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्य वैशिष्ट्य अथवा व्यक्ति बोध तटस्थ वर्गबद्ध सामाजिकता नहीं है; व्यक्ति बोधात्मक सामाजिकता अथवा सामाजिक संश्लिष्टता नहीं है, व्यक्ति का व्यतीतवाद है। व्यक्ति का व्यतीतवाद व्यक्ति का जयन्त-बोध है। व्यक्ति का व्यतीतवाद व्यक्तिमत्ता को विशिष्टता से वंचित करता है। जयन्त क्लीव, असामाजिक और पलायनवादी है। वह जिन्दगी से भागता है । जयन्त कर्मठ नहीं है। जिन्दगी के अंगारों से वह डरता है । वह अंगारों के समीप जा नहीं सकता । जीवन की युद्ध कर्मठता जयन्त ने उत्पादित नहीं की। जयन्त में जीवनपरक दायित्व-चिन्तन नहीं है । जीवनपरक दायित्व-विमुखता व्यतीतवाद में है । ध्यतीतवाद दायित्व विमुखता का निराकरण जैनेन्द्र ने नहीं किया । जैनेन्द्र को 'कल्याणी' का सृष्टा होने का गर्व होने का अधिकार है। 'कल्याणी' उपन्यास जैनेन्द्र चिन्तन को बड़े अर्थों में अभिव्यक्त करता है । नायिका के आधार पर उपन्यास का नामकरण हुआ है। कल्याणी का आधार-व्यक्तित्व-जीवन-संश्लिष्टता में है। कल्याणी जैनेन्द्र की नारी है। जीवन के प्रश्नों की मूर्तिपरकता है । जीवनसंश्लिष्टता की सृष्टिबोधिनी मूतिमत्ता है। वह जीवन-प्रश्नों के ऋतू-नीड़ में निवास करती है। वह अान्तरिकता की ग्रन्थियों से घिरी है । ग्रंथियों की एक महाग्रंथि है । वह मृत्यु जागरूक प्राकृतिवाद है । यद्यपि कल्याणी ईश्वर, ईश्वरत्व और ईश्वर की सत्ता में विश्वास करती है, किन्तु ईश्वर के शब्दोच्चारण से उसके चेहरे की हंसी गायब हो जाती है और वहाँ एक त्रास लिख जाता है। कल्याणी के अनुसार एक का सब कुछ नहीं जाना जा सकता, क्योंकि सब तो ईश्वर के ही ज्ञान में है । सच है कि नारी जितना बाहर है, उससे ज्यादा अन्दर में वह है । नारी जितनी खुली है, उससे बहुत ज्यादा बंद ही है । कल्याणी में अन्तमुर्खता की सनातन निष्ठा है, किन्तु वह लोकविमुख नहीं है । वह नारीत्व की मीमांसा है । कल्याणी में पलायनवाद नहीं है। जीवन और सृष्टि के सम्बन्ध में कल्याणी में सप्रश्नता है-कल्याण वादी जिज्ञासा । कल्याणी नारी है, नारीत्व की सांस्कृतिक निष्ठा से परिपूर्ण, नारीत्व के पालोक-भारत से प्रकाशान्वित भी । प्रत्येक नारी के अन्दर कल्याणी का निवास है, अन्दर की कल्याणी को विकसित करने की सम्यक् आवश्यकता है । कल्याणी ने त्रास को हँसी के छिलकों में छिपा दिया है । कल्याणी का त्रास जीवन का वास है । वह स्त्री है और "स्त्री का पहला दोष तो यही है कि वह स्त्री है।"

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