Book Title: Jainendra Vyaktitva aur Krutitva
Author(s): Satyaprakash Milind
Publisher: Surya Prakashan Delhi

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Page 257
________________ ~ Vvvvvv.naver. . . - जनेन्द्र के जयवर्टम-पूर्व उपन्यास : एक पर्यवेक्षण २४१ रहना होगा ? तुम्हारे उस भगवान् की कभी हमें भी तो सहायता करनी चाहिए।" और भी "होता होनहार है और सब काल कराता है।" यह भवनमोहिनी अभिव्यक्त होती है । होनहार और काल आदि शब्दों का प्रायश्र लेकर बेफिक्र हो जाने का भवनमोहिनी-सन्देश भुवनमोहिनी की पक्षपातरहित सात्विकता के प्रति हमारा प्रास्था-धनत्व समाप्त हो जाता है। निरपराध व्यक्तियों की हत्या क्रान्ति-मार्ग नहीं है। निरपराध व्यक्तियों के हत्यारे के लिए घृणा नहीं, क्षमा नहीं, आदर नहीं, प्रेम है, सामाजिक वैधता से वंचित प्रेम है। विवर्त-पुरुष के अनुसार, 'पैसे के बगैर कुछ नहीं होता। सरकार पैसा छाप कर बनाती है, हम लूट कर लाते हैं । छपा पैसा बांटकर वह सिपाही और मेम्बर और नौकर जमा करती है । लाखों सिपाही और लाखों नौकर और हजारों मेम्बर । नौकर अफसर होते हैं, मेम्बर नेता होते हैं । अब हम क्रान्ति करेंगे और उसके लिए रुपया लूटेगे, बना-बनाया रुपया । बनायेंगे नहीं, लूटेगे । क्यों जी, बनाने वाला इससे लुट सकता है, टूट सकता है ?......" अर्थात लूटना क्रान्ति करना हुआ। सरकार लूटपाट से टूट जायगी। लूटना सरकार को तोड़ने का रास्ता है । पंसा ही सब कुछ है । उसके बिना कुछ नहीं होता । हमारी कृपा है कि हम पैसे बनाते नहीं, लूटते हैं । यही जितेन का क्रान्तिदर्शन है । यह क्रान्ति का सबसे बड़ा अपमान है । क्रान्ति का कार्यान्वयन नहीं । क्रान्ति का बलात्कार जितेन का क्रान्ति-दर्शन करता है । जितेन के तथाकथित क्रान्ति वाद में निर्माण का आलोक नहीं, विध्वंस का अन्धकार है । जितेन का तथाकथित क्रान्तिवाद क्रान्ति के प्रति श्रद्धा और आस्था के हमारे सम्पूर्णत्व और सम्पूर्ण घनत्व को समाप्त करने में यथेष्ठ सहायक होता है। जितेन के शब्दों में जैनेन्द्र ने चोरी और सीनाजोरी में कार्य-अन्तर शब्दप्रावरण में प्रदर्शित किया है। जाली रुपया बनाने के परिणाम को जितेन ने आदमी का सस्ता होना बतलाया है । जाली रुपये से “पैसा सस्ता बनता है, पर आदमी नहीं बनता है। प्रादमी सस्ते पैसे से नीच बनता है।" और लूट से क्या प्रादमी मंहगा होता है ? आदमी के सस्ता और मंहगा होने से जैनेन्द्र का क्या तात्पर्य है ? यह विवर्तवृत अथवा जैनेन्द्र-उपन्यास-वृत में स्पष्ट नहीं। __जितेन कहता है-"हम सामान पैसे से लेते हैं । पादमी पंसे से जुटाते हैं, उस पैसे से जिस पर छाप सरकारी है। ऐसे हम सरकार को हटाते नहीं, जमाते

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