Book Title: Jainendra Vyaktitva aur Krutitva
Author(s): Satyaprakash Milind
Publisher: Surya Prakashan Delhi

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Page 262
________________ २४६ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व रहती है । इसीलिए तो अनिता ने कहा-"खोलकर और क्या कहना है।" अनिता के अन्दर कुछ मीठा-मीटा जरूर है, जिसे लेकर वह जयंत की ओर हमेशा बढ़ती रही है । अपने अन्दर का वह मीठा-मीठा खुद चाट कर वह बीतती जाती है । जयन्त 'व्यतीत' वातावरण का पात्र है, रोग भी । अनिता जयन्त के प्रति प्रात्मपीड़ित है । जयन्त रोग से पीड़ित है वह। जयन्त चन्द्रकला से विवाह कर लेता है। चंद्रकला के विषय में स्वयं जयंत के जयंत-व्यक्तित्व की ओर से यह कहा गया है-"चन्द्रकला को देखा है। जीवन वहाँ ज्वार पर है । ठाठ पर ठाठ देकर लहरें आती और उस पर फेन-सा बखेर जाती हैं । बड़ी कमनीय है।" किंतु इसके बावजूद भी चंद्रकला और चंद्रकला की सम्पूर्ण नारी की अमानुषिक अवहेलना जयंत और जयंत-व्यक्ति की ओर से होती है। जैनेन्द्र का 'व्यतीत' जीवन के प्रति अनास्था उत्पन्न करने का साधक है। जीवन से भागना जिंदगी नहीं है । जयत सच्चे अर्थों में जीवन को स्वीकार नहीं करता। जीवन के प्रति जयंत-प्रयत्न अनास्थावाद का पोपक है । 'व्यतीत' का पुरुषदर्शन अनास्था का दर्शन है । जीवन के प्रति आस्था जयंत में नहीं हैं। 'कल्याणी' की अंतिम पंक्ति- "मुझे रहने दो। मैं रहना चाहता हूँ-" का जीवनवाद भी. 'व्यतीत' में नहीं है । कल्याणी की मृत्यु पर जैनेन्द्र ने जीवन के विपरीत जीवनवाद को ग्रहण किया, किंतु वह जीवनवाद, जीवित रहने का आकांक्षा-वृत्त भी व्यतीत में हम नहीं पाते । व्यतीत-दर्शन अनास्था का विषय है । अनास्था को मैं नास्तिकता नहीं मानता । जैनेन्द्र ने कहीं भी नास्तिकता नहीं प्रकट की। यत्र-तत्र अनास्था अवश्य प्रकट कर दी है। 'व्यतीत' में, व्यतीत वृत्त में अनिता की जयत-लिप्सा के मूल और उसके आधार-व्यक्तित्व में नारी-हृदय का कौन-सा रहस्य सूत्र है-यह एक पक्ति में नहीं कहा जा सकता, किंतु जयंत का नारी-विकर्षण पुरुषत्व नहीं घोषित करता । व्यतीत दर्शन का पुरुष निर्माणात्मक वैभव से वंचित है । व्यतीतवादी पुरुष में जीवन-प्रयत्न नही है । अनिता की जयंत-लिप्सा में 'त्यागपत्र' की मृणाल नहीं बोलती। विवाद-वैभव 'व्यतीत' की विशेषता है-अर्थात् प्रबुद्ध पाठक एक लम्बे अर्से तक व्यतीतवाद पर तक अवश्य कर सकता है । व्यतीतवाद में प्रबुद्ध स्वीकृति का प्रभाव है । 'व्यतीत' का मार्ग-दर्शन जीवन का अवमूल्यन करता है। आदमी और घटनाओं में आत्मा का सम्बन्ध है । जनेन्द्र के शब्दों में, "प्रादमी घटनाओं में से होता है और उन घटनाओं के सूत्र किस प्रलक्ष्य में से प्राते हैं कि पता ही नहीं चलता।" घटनामों से अलग प्रादमी को हम कर नहीं सकते । मादमी

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