Book Title: Jainendra Vyaktitva aur Krutitva
Author(s): Satyaprakash Milind
Publisher: Surya Prakashan Delhi

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Page 256
________________ २४० जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व समाज वर्ग-भेद के रोग से पीड़ित है। जितेन का रास्ता-तोड़फोड़ का रास्ता -क्या समाज का वर्ग-वैषम्य मिटा सकेगा? नहीं। जितेन का उपसंहार इसका साक्षी है। ___ समाज के प्राधार-वर्ग के जागरण का आकांक्षी जितेन है। उसके अनुसार, जागरण शास्त्र-उपदेश से नहीं, उग्र पंथ से पायेगा। चीटियों को बूरा खिलाने से समाज-कल्याण नहीं होगा । अहिंसावाद पर उसे प्रास्था नहीं। अहिंसा का मार्ग सम्पूर्ण नहीं, किन्तु शासन-यन्त्र को जितेन का आत्मसमर्पण क्या उग्र-पंथ का आत्मसमर्पण है, उग्र पंथ की पराजय है ? जितेन तथाकथित क्रान्तिकारियों का सरदार है। वह कहता है - "जेवर घर-ग हस्थी की चीज़ है । दुश्मनी हमारी सिक्के से है। क्यों एक जगह धन इकट्ठा हो जाता है, जबकि सब जगह उसकी जरूरत है ? उसके फैलाने की कोशिश को चोरी कहा जाए कि डकैती-उस कोशिश से हम बाज नहीं आ सकते। इकट्ठा हा धन फटेगा......" इकट्ठा हुआ धन फटना चाहिए । ठीक है, किन्तु किस तरह ? धन फैलाने का जितेन-मार्ग क्या स्वस्थ मार्ग है ? क्या विवर्त-वत में जितेनमागियों को-विवर्तवादियों को सफलता मिली ? नहीं। क्यों ? क्या जितेन के भीतर में दबाव हुआ ? जितेन के भीतर के दबाव पर सहसा विश्वास नहीं होता। ____धन फैलाने का रास्ता सर्वमान्य और स्वस्थ होना चाहिए, जितेनमागियों का रास्ता धन को स्वस्थ ढंग से फैलाने का नहीं। समाज-कल्याणपरक सिद्धान्त अथवा समाज-कल्याणवादी सिद्धान्तवाद का मार्ग जितेन-मार्ग नहीं। जितेन के शब्दों में, "कैसे पेट भरेगा ? मैं तो कुछ करता नहीं, कमाता नहीं। हममें से कोई कुछ और नहीं करता, ऐसा ही काम-धाम हम करते हैं। क्रान्ति का यही करना कहाता है। दुनिया छीन-झपट की है। झपट कर जो लिये बैठे हैं, हम उनसे छीनते हैं .....।" पेट भरने का गलत रास्ता अख्तियार करना क्रान्ति में शामिल नहीं है। पंजाब मेल दुर्घटना जितेन के कुकृत्यों के कारण हुई, यह जितेन स्वयं स्वीकार करता है। दुर्घटना में तिरेसठ व्यक्तियों की मृत्यु हुई और दो सौ पन्द्रह व्यक्ति पाहत हुए। जितेन तथाकथित क्रान्तिकारियों का सरदार है । क्या यह क्रान्ति-मार्ग है ? क्रान्तिमार्ग का चरम लक्ष्य सम्यक कल्याण होता है-समष्टि-कल्याण ! जितेन के कारण अथवा जितेनमागियों के द्वारा समाज-कल्याण अथवा समष्टि-कल्याण नहीं हुआ। हाँ, अनेक निरपराध व्यक्तियों की मृत्यु अवश्य हुई। अनेक निरपराध व्यक्ति हताहत अवश्य हुए। और, इसके लिए दर्शन का अनुचित प्राश्रय जितेन ने ग्रहण किया कि "मरना किसको नहीं है? क्या सबको मारने का पाप हमेशा भगवान् को ही उठाते

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