Book Title: Jainendra Vyaktitva aur Krutitva
Author(s): Satyaprakash Milind
Publisher: Surya Prakashan Delhi

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Page 240
________________ जैनेन्द्र के जयवर्द्धन-पूर्व उपन्यास : एक पर्यवेक्षण २२३ अभिनय क्यों करें। रुकने को जीवन में क्यों ग्रहण करें । जीवन के बाहर रुकना तो है ही, जीवन में नहीं। सुनीतावाद के अनुसार "भागना तो नरक से भी ठीक नहीं, क्योंकि नरक का भय फिर तुम पर सवार ही रहेगा ।" अतएव भागने के विपरीत भागने के कारण को हम दूर कर दें। क्योंकि, भागने पर भागने के कारण का भय हम पर बना ही रहेगा । और, भय का बना रहना जिन्दगी को कमज़ोर करना है। सुनीता हरिप्रसन्न से कहती है-"जानो, लेकिन जाकर कहाँ पहुँचोगे ? वहाँ जहाँ दुनिया नहीं है ? ऐसी कौन जगह है ? कौन जगह है कि जहाँ हम लोग नहीं हैं । तुम्हीं तुम हो ? तुम्हारा हृदय तक भी वह जगह नहीं है, जानते हो ? जो अपने में चप, बन्द, चैन से क्यों नहीं बैठता ? क्यों वह धड़कता है ? जानते हो ? इसी से कहती हैं, जहाँ कोई और न हो, वहाँ भी हम हैं, कहो, नहीं हैं ? इससे हरिप्रसन्न मत जायो । भागना तो नरक से भी ठीक नहीं । क्योंकि नरक का भय फिर तुम पर सवार ही रहेगा।" सुनीतावादी दर्शन यहाँ है । सूनीतावादी परमात्मा का विश्वास प्राप्त करना चाहता है । परमात्मा पर विश्वास करता है और उसकी प्रार्थना में से बल प्राप्त करना चाहता है । सनीता हरिप्रसन्न से कहती है----"हम दोनों परमात्मा का विश्वास पायें और उसकी प्रार्थना में से बल पाएँ।" भागने के आन्तरिक निजत्व की असंभवता के फलस्वरूप सुनीतावाद परमात्मा का विश्वास प्राप्त करना चाहता है । यद्यपि प्रार्थना में से बल प्राप्त करने का उपदेश सुनीतावाद प्रदान करता है, किन्तु सुनीतावाद की महादेवी धर्म की जड़ता से विमुख है । प्रार्थना में से बल प्राप्त करती हुई भी नहीं पायी जाती । सुनीतावाद को अपने पर यथेष्ठ विश्वास है । सुनीतावाद जीवन को निजत्व का आलोक प्रदान कर आस्था और विश्वास उत्पन्न करता है । सबलता का दम्भ सुनीतावाद में नहीं है। प्रबलता की स्वीकृति जीवन की अवहेलना नहीं है। जीवन में सीना दिखाना चाहिए, पीठ नहीं। ___जीने की अवधि में भय की नदी में डूबकर हम सम्यक् जीवन से हमेशा के लिए हाथ धो बैठते हैं । भय जिन्दगी को तोड़ देता है। सुनीता कहती है--"परमात्मा पर विश्वास रक्खो। वह भय से हमें तारेंगे।" सुनीता के अनुसार "प्रार्थना से शक्ति पाती है।" विनोबा जी प्रार्थना से शक्ति प्राप्त करते है । वह नित्य प्रतिदिन सामूहिक प्रार्थना में जीवनमय भाग लेते हैं और शक्ति का गौरव प्राप्त करते हैं, किन्तु उपन्यास में ऐसा कोई स्थल नहीं पाया जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि सुनीता ने

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