Book Title: Jainendra Vyaktitva aur Krutitva
Author(s): Satyaprakash Milind
Publisher: Surya Prakashan Delhi

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Page 245
________________ NAVARANAMAHARMA/५4 २२८ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व प्रवर्तन किया जिसे मैं त्यागपत्रवाद कहना चाहूँगा । त्यागपत्रवाद फायड से विशेषतया प्रभावित है । परन्तु त्यागपत्रवाद में भारत-अन्विति अर्थात् भारतीय-संस्कृति के प्रति जीवित जागरूकता और भारतीय मर्यादा उपस्थित है। प्रमोद 'त्यागपत्र' का नायक है । प्रमोद त्यागपत्र-पुरुष है । मृणाल के प्रति त्यागपत्र-पुरुष का आकर्षण-उत्ताप केवल शिष्ट पारिवारिकता नहीं है । त्यागपत्रपुरुष के मृणालपरक पाकर्षण-उत्ताप में प्रच्छन्न वासना का इंद्रजाल है जिसमें मूलप्रवृत्तियों का वैभव और पारिवारिकता के रंग हैं । मृणाल प्रमोद की बुना ही नहीं, प्रमोद के लिए कुछ और भी है । प्रमोद के मृणालपरक "कुछ और" में ही जैनेन्द्र का प्रमोद-निरूपण निहित है । प्रमोद के जीवन का मृणालवाद वस्तुतः व्यक्तिपरक, व्यक्तिबोधात्मक निष्ठा है, जिस पर मूल-प्रवृत्तियों का भारतवाद चढ़ा हुआ. है । प्रमोद का यागपत्र मृणालवाद की प्रतिक्रिया है, जीवन के मणालवाद की प्रतिक्रिया है, मूल-प्रवृत्तियों के मानव और समाज-सत्यों के मानव के अस्तित्त्व-संघर्ष में मध्यममार्ग का चयन है । 'त्यागपत्र' अपनी आकार-लघता के बावजूद भी, जैनेन्द्र के उपलब्धि. सान्निध्य का परिचायक है । क्रांतिकारीदल प्रादि से सम्बंध रखने वाली जैनेन्द्र की बहुविज्ञापित कथावस्तु से बिल्कुल भिन्न 'त्यागपत्र' की कथावस्तु है । 'त्यागपत्र' में विवर्त', 'सुनीता,' 'सुखदा', 'तपोभूमि' आदि का क्रांतिवाद नहीं है । जैनेन्द्रपरक क्रांतिवाद की एकरूपता के कारण जैनेन्द्र के उपन्यास कथावस्तु-वैभिन्य उपस्थित नहीं करते, प्रत्युक्त एक अत्यंत सीमित क्षेत्र में एक विशेष प्रकार का कथावस्तुवाद का परिचय देते हैं । त्यागपत्र' में जैनेंद्र का कथावस्तुवाद नहीं, कथावस्तु है । कथावस्तु है, इम. लिए सप्राण है, जीवन के विशेष निकट हैं । लोकवाद अथवा सामाजिकता का ज्वर साहित्य को जीवनमय नहीं बना देता । प्रचलित अर्थों में जैनेंद्र लोकवादी नहीं, लोकवाद के ज्वर से पीड़ित नहीं। जैनेन्द्र में समाज-बोध का सत्य है, सामाजिकता का ज्वर नहीं। कथावस्तुवाद कथावस्तु को पंगु बना देता है । अभिव्यक्त कर चुका हूँ कि 'त्यागपत्र' में जैनेन्द्र का कथावस्तुवाद नहीं है । इसलिए, 'त्याग पत्र' में मार्मिकता की धप है, जैनेन्द्र का विवर्तवाद नहीं । 'विवर्त'-कथानक को जैनेन्द्र ने रेवेन्यू टिकट की तरह अपने उपन्यासों में चिपकाया है । विवर्त-कथानक को जैनेन्द्र ने हस्तगत कर लिया है, जैनेन्द्र उपन्यासवाद में विवर्त-कथानक के माध्यम बन गए। जैनेन्द्र विवर्त-कथानक के बंदी हैं । विवर्त कथानक ने जैनेन्द्र को उपयोग में लाया है । विवर्त-कथानक को ही मैं विवर्तवाद कहता हूँ । विवर्तवाद के प्रति जैनेन्द्र का पूर्वाग्रह अनामंत्रित अतिथि की तरह प्रवेश करता रहा है। 'त्यागपत्र' का विवर्त

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