Book Title: Jainendra Vyaktitva aur Krutitva
Author(s): Satyaprakash Milind
Publisher: Surya Prakashan Delhi

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Page 246
________________ जैनेन्द्र के जयवर्धन-पूर्व उपन्यास : एक पर्यवेक्षण २२६ पृथकत्व त्यागपत्र' को विशिष्टता का महिमामय आलोक प्रदान करता है। 'विवर्त' अथवा विर्वत-भूमि से मेरा विरोध नहीं : जीवन का लेखक विर्वत की अवहेलना नहीं करेगा, क्रान्ति को वह विराट अर्थों में अवश्य स्वीकार करेगा, किन्तु जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासो में विवर्त को एक सम्प्रदाय का रूप दिया है, जो मुझे विशेष पसन्द नहीं । साहित्य सम्प्रदाय का सेवक नहीं होता । वह जीवन शासित है, जीवन सम्प्रदाय नहीं होता । विवर्त भूमि तथाकथित क्रान्ति की उग्र भूमि है, किन्तु क्रान्ति को जीवन के विराट् अर्थों में स्वीकार करना चाहिये, सम्प्रदाय के रूप में नहीं । खेद है कि जैनेन्द्र की क्रान्ति-कथा-भूमि क्रान्ति को 'वाद' का रूप देती है-~-क्रान्तिवाद, जिसे जैनेन्द्र के विवर्त के आधार पर विवर्तवाद मैंने कहा है । जैनेन्द्र के कथानक का विवर्तवाद 'त्यागपत्र' में नहीं है। इसलिए भी, मैं 'त्यागपत्र' को जैनेन्द्र-साहित्य का मील स्तम्भ मानता हूँ । 'त्यागपत्र' की मृणाल में जैनेन्द्र का व्यक्तिबोध मूलप्रवृत्ति के आलोक में प्रकाशान्वित है । 'व्यतीत' की नारी से भिन्न मृणाल है। 'व्यतीत' की अनिता और चन्द्रकला मृणाल नहीं है । 'व्यतीत' में जैनेन्द्र का व्यक्ति-दर्शन भ्रष्ट हो गया है। 'व्यतीत' का व्यक्ति-दर्शन एक सम्प्रदाय के रूप में पाया है, जिस पर व्यक्ति-वास्तव अथवा व्यक्ति-बोध से बहुत ज्यादा व्यक्ति-रिक्तता और समाज-पृथकत्व हावी है। जैनेन्द्र का व्यतीत-दर्शन अर्थात व्यतीतवाद व्यक्तिबोधात्मकता के प्रति व्यक्ति का विश्वास समाप्त कर देता है, व्यक्ति के विश्वास का बलात्कार करता है। व्यक्ति सत्यों के साथ जैनेन्द्र ने ' तीत' के अनेक स्थलों पर बलात्कार किया है। 'व्यतीत' का जयन्तवाद इस तथ्य का साक्षी है कि जैनेन्द्र तथाकथित व्यक्तिवाद के समाज में व्यक्ति-सत्य के साथ बलात्कार भी कर सकते हैं। जैनेन्द्र का जयन्त व्यक्ति-तथ्य के प्रति अपराधी है । जयन्त होरीवाद नहीं, वह होरी-पृथक्ता का जन्मजात रोगी है। किन्तु प्रवृद्ध पाठक इमलिये जयन्त के प्रति अनास्था नहीं पालित करता । पात्रों का होरीवादी होना आवश्यक नही । जयन्त के प्रति अनास्था के अन्य कारण हैं। 'त्यागपत्र' में प्रमोद जयन्तवाद से पीड़ित नहीं है। त्यागपत्र-पुरुष व्यक्तिदर्शन के आधार पर समाज-पृथकत्व और सामाजिक रिक्तता का पोषक नहीं। प्रमोद के त्यागपत्र में जयन्त-उत्तर्राद्ध नहीं है, प्रमोद के अन्दर पल रहे मृणालवाद की प्रतिक्रिया है। प्रमोद का मृणाल-आकर्षरण व्यक्ति-तथ्यों के प्रति आस्था का पालोक प्रदान करता है. व्यक्ति को व्यक्ति-सत्यों और व्यक्ति तथ्यों के धरातल पर रखता है, व्यतीतवाद का व्यामोह नहीं रचता । प्रमोदपरक मृगाल-अाकर्षण वस्तुतः मूलप्रवृत्ति

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