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जैनेन्द्र : उपन्यासकार
२६ साहित्य में चिर-स्मरणीय होगा । जैनेन्द्र की तीन स्त्री पात्र कुछ और भी रहस्यमयी और गहन हैं । जैनेन्द्र ने यह अवश्य समझ लिया है कि स्त्री एक अबूझ पहेली है। यहीं उनके चरित्र मार्मिक हैं । यद्यपि कभी-कभी उनकी स्त्री-पात्र ऐसे व्यापार भी कर डालती हैं, जो सहज बुद्धि की समझ में नहीं पाते ।
कट्टो उनकी स्त्री पात्रों में पहली होती हुए भी गम्भीरता लिये है। बड़ी भावुकता से जैनेन्द्रजी ने 'परख' कट्टो को समर्पित किया है ।
'मेरी कट्टो, तुमने कुछ नहीं लिया-यह तो ले लो । यह तुम्हारे ही लिये है। देखो, इन्कार न करो, टालो मत । अपने को तुमने विधवा ही रखा, इसको सधवा बना दो। अपने चरणों में आने दो। -' रवि बाबू ने अपनी एक कहानी में पुराने भारतीय कारीगरों का वर्णन किया है । वे तलवार के एक ही वार में फल ऐसा काट देते थे कि दो डुकड़े होकर भी वह एक-सा लगता था, जब तक कोई उसे हिलायेडुलाये नहीं । कट्टो के जीवन में हँसी, खेल, विनोद इसी प्रकार भरा था, किन्तु पीडा के एक ही प्रहार ने उसका विनोद गांभीर्य से काट कर अलग कर दिया । कट्रो का चरित्र जैनेन्द्र-साहित्य का एक उज्ज्वल नक्षत्र है । न जाने कहाँ से उसमें इतनी समझ, गम्भीरता और बलिदान-शक्ति पा गई !
_ 'सुनीता' रहस्यमयी है । उसको समझना कठिन है, किन्तु हमारी पूरी सहा. नुभूति उसके साथ है । नवीनता की खोज के प्राक्षेप से अपने को बचाते हए जैनेन्द्रजी ने हमसे कहा था कि 'सुनीता' में भारतीय स्त्री का पातिव्रत्य पराकाष्ठा को पहँच गया है । कोई भी बलि उसकी शक्ति के बाहर नहीं । श्रीकान्त उससे कह गये थे कि हरिप्रसन्न को रोकना ही होगा । उसे रोकने के लिए सुनीता ने अपने स्त्रीत्व तक की बाजी लगा दी । मिश्र देश की Sphinx और सुप्रसिद्ध चित्र Mona List के समान रहस्यमयी इस नारी के मन में न जाने क्या मधुर पीड़ा-मिश्रित भाव छिपे हैं ! लौह तीली के समान वह कठिन है और कितनी भी झुक जाने पर नहीं टूटती।
'त्याग-पत्र' केवल एक स्त्री-मृणाल अथवा प्रमोद की बुग्रा-की जीवनकथा है । गहरा और कठिन अवसाद मृणाल के मन पर जमा है। भारतीय समाज की कड़वी और सच्ची आलोचना, ‘त्याग-पत्र' में है। यह आलोचना सुनने और समझने का साहस सबमें होता भी नहीं । मृणाल की विचारधारा शायद हम न ठीक-ठीक समझे; किन्तु कितना अभिमान और प्रात्म-सम्मान उसके मन में है । कट्टो और सनीता से भी अधिक वह हमारे मन को विचलित और व्यथित कर देती है ।
जनेन्द्र हिन्दी के क्रान्तिकारी लेखक हैं । रूढ़ियों पर उन्होंने कटिन प्रहार किये हैं। किसी सरल, स्वच्छ, आकर्षक जीवन की खोज में वह निरत हैं, किन्तु शायद उन्हें इस अँधियारे में अपना पथ स्पष्ट नहीं सूझता । 'मन में एक गाँठ-सी पड़ती जाती