Book Title: Jainendra Vyaktitva aur Krutitva
Author(s): Satyaprakash Milind
Publisher: Surya Prakashan Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 231
________________ २१४ जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व वे बुद्धिचेत्ताओं का मार्मिक भाव-प्रेषणात्मक संवेदन विशेष रूप से प्राप्त कर स हैं । जैनेन्द्र में वस्तुमत्ता व्यक्तिमत्ता का माध्यम है । उन्होंने अपनी वस्तु-परिधि में जीवन परक सृष्टि- चिन्तन के उपकरण कलात्मकता के साथ सुसज्जित करने का सुप्रयास किया है । उनके उपन्यासों में वस्तु के प्रति परिधिवाद है । उनका वस्तुसंदर्भ संक्षिप्त है । वस्तु- परिवेश- संक्षेपण में जैनेन्द्र की प्रास्था है । यह 'जैनेन्द्रमार्ग' है । रचना जैनेन्द्र के उपन्यास सहायक कथानकों के उपन्यास नहीं हैं । अंतःकथाों का - शिल्प जैनेन्द्र में नहीं है । उपन्यासकार जैनेन्द्र में अवान्तर प्रसंग नहीं हैं । जैनेन्द्र के पात्र पारदर्शी नहीं होते । जैनेन्द्र की नारी पारदर्शी नहीं होतीं । व्यष्टि की प्रान्तरिकता से परिपूर्ण जैनेन्द्र का पात्र - निरूपण है । जैनेन्द्र के पात्रों में कहानी से ज्यादा भाव ही है । जैनेन्द्र ने कारखाने के मजदूरों और कृषकों को अपने उपन्यासों की पात्रता नहीं प्रदान की । उन्होंने अपने उपन्यासों में क्रान्ति रखी है, क्रान्ति की है और क्रान्तिचिन्तन किया है । फिर भी उन्होंने मार्क्सवाद अथवा लेनिन-प्रतिपादित सिद्धान्तों का वमन नहीं किया । जैनेन्द्र ने अपनी बाहों पर काली पट्टी बांधकर ज़िन्दगी के खिलाफ.. मुर्दाबाद के नारे नहीं बुलन्द किये । उन्होंने सामाजिकता के क्षेत्र में प्रेमचन्द का शिष्यत्व नहीं स्वीकार किया । जैनेन्द्र का साहित्य साहित्य और साहित्य के इतिहास में एक नवीन अध्याय जोड़ता है, साहित्य के जैनेन्द्र- अध्याय का स्वस्थ मूल्यांकन अवश्य होना चाहिए, क्योंकि वे चिन्तन के जीवन-चित्रकार हैं । अब मैं जैनेन्द्र के जयवर्द्धन - पूर्व उपन्यासों पर विचार करूँगा । प्रस्तुत निबन्ध में जयवर्द्धन-पृथकत्त्व जयवर्द्धन की अवहेलना नहीं, केवल स्थानाभाव के ही कारण है । 'जयवर्द्धन' उपन्यास - साहित्य का गौरव है । 'परख' जैनेन्द्र का प्रथम उपन्यास है । 'परख' की महत्ता इसलिए है कि यह जैनेन्द्र का प्रथम उपन्यास है । 'परख' वस्तुतः एक असफल उपन्यास है । 'परख' के द्वारा जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासवाद का श्रीगणेश किया, किंतु 'परख' में कोई ऐसा तत्त्व श्रवश्य है, जो जैनेन्द्र के प्रत्येक उपन्यास में रेंगता रहा है । उक्त तत्त्व को मैं जैनेन्द्र का परख-तत्त्व कहूँगा । 'परख' में कुछ ऐसे तत्त्व बिना किसी पूर्व योजना के उभर आए थे, जिनका निर्वाह जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासों में हमेशा किया । 'परख' के आधारवाद के प्रति जैनेन्द्र ने अपनी उपन्यास - श्रृंखला में जागरूकता का परिचय दिया | जैनेन्द्र ने 'परख' के बाद से 'कल्याणी' और 'जयवर्द्धन' तक अपना यथेष्ट विकास किया है । 'सुनीता' 'त्यागपत्र', 'कल्याणी', आदि में जैनेन्द्र ने हमें सोचने की

Loading...

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275