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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व
वे बुद्धिचेत्ताओं का मार्मिक भाव-प्रेषणात्मक संवेदन विशेष रूप से प्राप्त कर
स हैं ।
जैनेन्द्र में वस्तुमत्ता व्यक्तिमत्ता का माध्यम है । उन्होंने अपनी वस्तु-परिधि में जीवन परक सृष्टि- चिन्तन के उपकरण कलात्मकता के साथ सुसज्जित करने का सुप्रयास किया है । उनके उपन्यासों में वस्तु के प्रति परिधिवाद है । उनका वस्तुसंदर्भ संक्षिप्त है । वस्तु- परिवेश- संक्षेपण में जैनेन्द्र की प्रास्था है । यह 'जैनेन्द्रमार्ग' है ।
रचना
जैनेन्द्र के उपन्यास सहायक कथानकों के उपन्यास नहीं हैं । अंतःकथाों का - शिल्प जैनेन्द्र में नहीं है । उपन्यासकार जैनेन्द्र में अवान्तर प्रसंग नहीं हैं । जैनेन्द्र के पात्र पारदर्शी नहीं होते । जैनेन्द्र की नारी पारदर्शी नहीं होतीं । व्यष्टि की प्रान्तरिकता से परिपूर्ण जैनेन्द्र का पात्र - निरूपण है । जैनेन्द्र के पात्रों में कहानी से ज्यादा भाव ही है ।
जैनेन्द्र ने कारखाने के मजदूरों और कृषकों को अपने उपन्यासों की पात्रता नहीं प्रदान की । उन्होंने अपने उपन्यासों में क्रान्ति रखी है, क्रान्ति की है और क्रान्तिचिन्तन किया है । फिर भी उन्होंने मार्क्सवाद अथवा लेनिन-प्रतिपादित सिद्धान्तों का वमन नहीं किया । जैनेन्द्र ने अपनी बाहों पर काली पट्टी बांधकर ज़िन्दगी के खिलाफ.. मुर्दाबाद के नारे नहीं बुलन्द किये । उन्होंने सामाजिकता के क्षेत्र में प्रेमचन्द का शिष्यत्व नहीं स्वीकार किया । जैनेन्द्र का साहित्य साहित्य और साहित्य के इतिहास में एक नवीन अध्याय जोड़ता है, साहित्य के जैनेन्द्र- अध्याय का स्वस्थ मूल्यांकन अवश्य होना चाहिए, क्योंकि वे चिन्तन के जीवन-चित्रकार हैं ।
अब मैं जैनेन्द्र के जयवर्द्धन - पूर्व उपन्यासों पर विचार करूँगा । प्रस्तुत निबन्ध में जयवर्द्धन-पृथकत्त्व जयवर्द्धन की अवहेलना नहीं, केवल स्थानाभाव के ही कारण है । 'जयवर्द्धन' उपन्यास - साहित्य का गौरव है ।
'परख' जैनेन्द्र का प्रथम उपन्यास है । 'परख' की महत्ता इसलिए है कि यह जैनेन्द्र का प्रथम उपन्यास है । 'परख' वस्तुतः एक असफल उपन्यास है । 'परख' के द्वारा जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासवाद का श्रीगणेश किया, किंतु 'परख' में कोई ऐसा तत्त्व श्रवश्य है, जो जैनेन्द्र के प्रत्येक उपन्यास में रेंगता रहा है । उक्त तत्त्व को मैं जैनेन्द्र का परख-तत्त्व कहूँगा । 'परख' में कुछ ऐसे तत्त्व बिना किसी पूर्व योजना के उभर आए थे, जिनका निर्वाह जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासों में हमेशा किया । 'परख' के आधारवाद के प्रति जैनेन्द्र ने अपनी उपन्यास - श्रृंखला में जागरूकता का परिचय दिया | जैनेन्द्र ने 'परख' के बाद से 'कल्याणी' और 'जयवर्द्धन' तक अपना यथेष्ट विकास किया है । 'सुनीता' 'त्यागपत्र', 'कल्याणी', आदि में जैनेन्द्र ने हमें सोचने की