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जनविद्या
उपमानों के चयन में कविश्री की दृष्टि कहीं-कहीं ग्राम्य दृश्यों की ओर भी गई है। उपमान परम्परागत प्रयुक्त होने पर भी नवीनता लिये हुए हैं । उपमा अलंकार के माध्यम से कविश्री नयनंदि ने उपदेश-भावना का पुट भी दे दिया है । यथा -
काहे वि रमणे पिए विट्ठि दिग्ण,
ण चलइ णं कद्दमि ढोरि खुण्ण । 7.17 अर्थात् प्रिय पर पड़ी किसी रमणी की दृष्टि इस प्रकार आगे न बढ़ी जिस प्रकार कीचड़ में फंसा पशु । एक और अन्य उदाहरण में भी यही भावना परिलक्षित है । यथा -
कुमुप्रसंड दुज्जणसमदरिसिम,
मित्तविणासणेण में वियसिय । 8.17 राजा घाड़ीवाहन के वर्णन में मेघ, सूर्य, विभीषण, इन्द्र, अर्जुन, भीम, बाहुबली, राम, कार्तिकेय, ब्रह्मा, विष्णु प्रादि से वैशिष्ट्य दर्शक व्यतिरेक अलंकार का वर्णन कवि की प्रलंकार शैली के उत्तम निदर्शन हैं । मनोरमा के नखशिख वर्णन में भी व्यतिरेक पौर उत्प्रेक्षा अलंकार की छटा विद्यमान है (4.2) ।
इस प्रकार कविश्री नयनंदि का यह चरितात्मक महाकाव्य पालंकारिक काव्यशैली की परम्परा में है । जहाँ-तहां वर्णनों में समासों की श्रृंखलाएँ एवं अलंकारों के प्रकृष्ट प्रयोग बाण और सुबन्धु का स्मरण दिलाते हैं ।
-- छंब-योजना-छंदों के वैविध्य और वैचित्र्य की दृष्टि से अपभ्रंश काव्यों में 'सुदंसणरिउ' का महत्त्व उल्लेखनीय है । कविश्री नयनंदि ने अपनी रचना को 'पद्धडिया बंध' की संज्ञा दी है । कवि का छंद-कौशल इस काव्य में स्पष्टरूप से मुखर है। अनेक अपरिचित छंदों का कहीं-कहीं नामोल्लेख भी मिलता है, कहीं-कहीं छंदों के लक्षण भी दिये हैं। उनका कहना है कि काव्यत्व छन्दानुवर्ती में है (2.6)।
___ कविश्री नयनंदि के महाकाव्य 'सुदंसणचरिउ' में 38 मात्रिक, 10 विसम मात्रिक, 34 वर्णवृत्त तथा 3 विसम वृत्त वणिक इस प्रकार कुल 85 छन्दों का व्यवहार हुमा है किन्तु प्रधानता मात्रिक छन्दों की है ।14 वणिकवृत्तों में नव्यता उत्पन्न करने का कवि का प्रयास प्रशंस्य है (3.4)। हिन्दी के प्राचार्य कवि केशवदास की 'रामचन्द्रिका' में मोर कविश्री नयनंदि के 'सुदंसणचरिउ' में प्रयुक्त अनेक छन्द विविधता की दृष्टि से समान हैं ।
वस्तुतः मुनिश्री नयनंदि विरचित महाकाव्य 'सुदंसणचरिउ' एक छंद-कोश है । इतने छन्दों का प्रयोग अपभ्रंश के अन्य किसी कवि ने नहीं किया । छंदों के विविध प्रयोगों की दृष्टि से यह काव्य संस्कृत और प्राकृत के छंदों से पार्थक्य निर्दिष्ट करता है।
मूल्यांकन-इस प्रकार उपर्यङ्कित विवेचनोपरान्त यही कहा जा सकता है कि कविश्री नयनंदि विरचित चरितात्मक महाकाव्य 'सुदंसणचरिउ' द्वारा तर्क, लक्षण, छंदालंकार, सिद्धान्त-शास्त्र के अनेक रहस्यों को समझा जा सकता है इसके अध्ययन से जीवन-मरण,