Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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जैनविद्या
धत्ता- इसको समझकर हे माता ! हे महासती ! (यदि ) शील पालन किया जाता है तो लाभ है । ( वरना ) हे सखी ! ( उदाहरणों को) देखते हुए ( मेरे द्वारा ) (यह ) ( समझा गया है) ( कि ) आपके आधार का ( ही ) नाश हो जायेगा (9, 10 ) ।
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1
रग फिट्टइ पेयवणे इह गिद्धु रण फिट्टइ तुंबरणारयगेड रण फिट्टइ वुज्जणे बुट्ठसहाउ रण फिट्टइ लोहु महाधरणवंते
रण फिट्टइ जोब्बरगइ रो
विभि
मरट्टु
महाकरिज हु
पावकलंकु
प्रसगाहु
रंग फिट्ट ग फिट्टह
रग फिट्टइ
रंग फिट्टइ
रण फिट्टइ
पाविहे
ग फिट्टइ प्रायहे जो घत्ता - ग्रहवा जं जिह जेरण किर जिह श्रवसमेव होएवउ । तं तिह तेरण जि बेहिएरम तिह एक्कंगेरग सहेवउ ॥
ण (भ) = नहीं फिट्टइ (फिट्ट) व 3 / 1 इस लोक में गिद्धु (गिद्ध) 1 / 1 पंकए ( पंक) 7 / 1 1 / 1 अनि ।
पंकए भिगु पठ्ठे । पंडियलोयविवेज 1
गिद्धरणचिरो विसाउ ।
रग फिट्टइ मारणचित्तु कयंते 1
रंग
फिट्टइ वल्लहे चित्तु चट्टु । 5
रग फिट्टइ सासए सिद्धसमूह । ग फिट्टए कामुयचित्ते भसंकु । सुछंदु वि मोतियवामउ एह ।
10
(8.9)
=
श्रक पेयवणे26 ( पेयवण ) 7 / 1 इह ( अ ) भिंगु (भिंग) 1 / 1 पट्टु (पइट्ठ) भूकृ
(1)
तुंबरणारयगेउ [ ( तुंबर) - ( णारय ) - ( अ ) 1 / 1 ] पंडियलोयविवेज [ ( पंडिय) - (लोय ) - ( विवेध) 1 / 1] ।
(2)
[30] अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 237
बुजणे 26 ( दुज्जण) 7/1 वुट्टसहाउ [ ( दुट्ठ) भूक अनि - (सहा) 1 / 1 ] रिङ्खणचिरो [ ( णिण ) - (चित्त) 277 / 1] विसाउ ( विसा ) 1 / 1 | (3)
लोहु (लोह) 1 / 1 महाघणवंते ( महाधरणवंत ) 287 / 1 वि मारणचित्तु [ ( मारण) - (चित्त) 1 / 1] कयंते ( कयंत ) 29 7/1 । (4) जोब्वणइत्ते ( जोव्वरण - इत्त) 7 / 1 वि मरट्टु ( मरट्ट) 1 / 1 वल्लहे ( वल्लह) 7 / 1 चित्तु (चित्त) 1 / 1 चट्ट (चट्ट) 1 / 1वि । (5)
fafa (far) 7/1 महाकरिजूहु [ ( महाकरि ) - ( जूह) 1 / 1] सासए 2 (सासन ) 7/1 सिद्धसमूह [ ( सिद्ध ) - (समूह) 1 / 1 ] । (6)
25 से 34. कभी कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हे. प्रा. का. 3-136)

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