Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 95
________________ हेमचन्द्र-अपभ्रन्श-व्याकरण सूत्र-विवेचन -डॉ. कमलबन्न सोगाणी उत्थानिका यह गौरव की बात है कि हेमचन्द्राचार्य ने अपभ्रंश की व्याकरण लिखी। उन्होंने इसकी रचना संस्कृत भाषा के माध्यम से की । अपभ्रंश व्याकरण को समझाने के लिए संस्कृतव्याकरण की पत्ति के अनुरूप संस्कृत भाषा के सूत्र लिखे गये । किन्तु सूत्रों का प्राधार संस्कृत भाषा होने के कारण यह नहीं समझा जाना चाहिए कि अपभ्रंश-व्याकरण को समझने के लिए संस्कृत के विशिष्ट ज्ञान की प्रावश्यकता है । संस्कृत के बहुत ही सामान्यज्ञान से सूत्र समझे जा सकते हैं। हिन्दी, अंग्रेजी आदि किसी भी भाषा का व्याकरणात्मक ज्ञान भी अपभ्रंशव्याकरण को समझने में सहायक हो सकता है । अगले पृष्ठों में हम अपभ्रंश-व्याकरण के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं। सूत्रों को समझने के लिए स्वरसन्धि, व्यंजनसन्धि तथा विसर्गसन्धि के सामान्यज्ञान की आवश्यकता है । साथ ही संस्कृत-प्रत्यय-संकेतों का ज्ञान भी होना चाहिये तथा उनके विभिन्न विभक्तियों में रूप समझे जाने चाहिये । अपभ्रंश में केवल दो ही वचन होते हैं-एकवचन तथा बहुवचन । प्रतः दो ही वचनों के संस्कृत-प्रत्यय-संकेतों को समझना आवश्यक है। ये प्रत्यय-संकेत निम्न प्रकार हैं

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