Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 100
________________ जैन विद्या इत्- और (एत्-ए) होते हैं । प्रकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों में डि परे होने पर जि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय) सहित अन्त्य 'प्र' के स्थान पर 'ई' और 'ए' होते हैं। देव (.)-दिव+ङि) देवि (सप्तमी एकवचन) (देव+डि)=देवे (सप्तमी एकवचन) कमल (नपुं) (कमल+ङि)=कमलि (सप्तमी एकवचन) (कमल+ङि)=कमले (सप्तमी एकवचन) भिस्येद्वा... 4/335 भिस्यद्वा [(भिसि)+ (एव) + (वा)] भिसि (भिस्) 7/1 एत् (एव) 1/1 वा (अ) विकल्प से । (अकारान्त शब्दों में) भिस् परे होने पर एत्-+ए विकल्प से (होता है)। प्रकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों में भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय) परे होने पर अन्त्य 'म' का ए विकल्प से होता है। देव (पु.)-(देव+भिस्) = (देवे--भिस्) : : भिस्=हिं (4/347) .(देवे+भिस्)=(देवे+-हिं)=देवेहि (तृतीया बहुवचन) कमल (नपुं)-(कमल+भिस्)=(कमले+भिस) भिस्=हिं (4/347) (कमले+भिस्)=(कमले+हिं) =कमलेहिं (तृतीया बहुवचन) 6. इसेहें-ह. 4/336 असेह- (उसेः) + (हे)-(ह)] इसेः (ङसि) 6/1 [(हे)-(हु) 1/2] (अकारान्त) (शब्दों से परे) 'इसि' के स्थान पर 'हे' प्रौर 'हु' (होते हैं)। प्रकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे सि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हे' मोर 'हु' होते हैं । देवा (पु.) -(देव+ङसि)=(देव+हे) =देवहे (पंचमी एकवचन) -दिव+सि)= (देव+हु)देवहु (पंचमी एकवचन) कमल (नपुं)-(कमल+ङसि)=(कमल+हे)=कमलहे (पंचभी एकवचन) --(कमल+ङसि)=(कमल+हु)=कमलहु (पंचमी एकवचन) Yiwan : म्यसो हं.-4/337::. भ्य स)+ (हुं)] भ्यसाहाम भ्यसः (म्यस्) 6/1 हं(ई) 1/1 (अकारान्त शब्दों से परे) भ्यस् के स्थान पर हैं (होता है)। प्रकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हुँ होता है। देव (पु.) –(देव+भ्यस्) = (देव+हुं)=देवहुं (पंचमी बहुवचन) कमल (ज.)-(कमल+भ्यस्)=(कमल+ह)=कमलहुं (पंचमी बहुवचन)

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