Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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जैन विद्या
स्त्रियाम् (स्त्री) 7/1 [ ( जस्) - (शस् ) 6 / 2] उत् ( उत्) 1 / 1 प्रोत् (प्रोत्) 1 / 1 स्त्रीलिंग में जस् और शस् के स्थान पर उत् + उ और प्रोत्+नो (होते हैं) । अपभ्रंश में प्रकारान्त, इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और शस् ( द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान 'उ' और 'नो' होते हैं ।
कहा (स्त्री.) - ( कहा + जस् ) = ( कहा + उ प्र ) = कहाउ, कहाम्रो
( कहा + शस्)
मह (स्त्री), लच्छी (स्त्री), षेणु (स्त्री.) और बहू (स्त्री) के
= महउ, महम्रो ( प्र. बहुवचन ) मउ, मो (द्वि. बहुवचन) लच्छी, लच्छी (प्र. बहुवचन) लच्छी, लच्छीप्रो (द्वि. बहुवचन)
19. ट ए
=
- ( कहा + उ, श्रो) कहाउ, कहाम्रो
=
कहा (स्त्री.) -
मह
(स्त्री.) - लच्छी (स्त्री.) -
धेणु (स्त्री.) - (स्त्री.) -
बहू
20. ङस् - ङस्योर्हे
4/349
टए [(ट) + (ए)] T: (TT) 6/1
ए (ए) 1/1
(स्त्रीलिंग शब्दों में) टा के स्थान पर 'ए' (होता है ) ।
अपभ्रंश में अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में टा (तृतीया एक
बचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ए' होता है |
( घेणु +टा) =
( बहू +टा) =
( कहा +टा) = ( कहा + ए ) = कहाए
( तृतीया एकवचन ) (तृतीया एकवचन )
( मइ + टा ) = ( मइ + ए ) = मइए
( लच्छी +टा) = ( लच्छी + ए ) = लच्छीए ( तृतीया एकवचन )
( प्रथम एकवचन )
घेउ, घेणुप्रो (प्र. बहुवचन) घेउ, घेणो (द्वि. बहुवचन) बहुउ, बहु (प्र. बहुवचन) बहुउ, बहुचो (द्वि. बहुवचन )
( घेणु + ए ) = वेणुए
( द्वितीया बहुवचन)
(
बहू + ए ) = बहुए
4/350
इस्-ङस्योहें [(ङस्योः) + (है)]
[ ( ङस् ) - ( ङसि ) 6 / 2] हे (हे ) 1/1
कहा (स्त्री.) - ( कहा --- ङस् ) = ( कहा + है) = कहाहे
( कहा + ङसि ) = ( कहा + हे) = कहा हे
( तृतीया एकवचन ) (तृतीया एकवचन )
(स्त्रीलिंग शब्दों में ) 'ङस्' मोर 'सि' के स्थान पर 'है' (होता है) ।
अपभ्रंश में प्रकारान्त, इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में इस् ( षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) और ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'है' होता है ।
( षष्ठी एकवचन )
( पंचमी एकवचन )

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