Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 97
________________ जैन विद्या (क) पुल्लिंग शब्द - देव, हरि, गामणी, साहु, सयंमू (ख) नपुंसकलिंग शब्द - कमल, वारि, महु (ग) स्त्रीलिंग शब्द कहा, मइ, लच्छी, घेणु, बहू सूत्रों के प्राधार से उपर्युक्त तेरह प्रकार के शब्दों के रूप बना लेने चाहिये । 1. हरि शब्द प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन 2. भूभूत् शब्द प्र. वि. तृ. च. पं. प. स. हमने सूत्रों को समझाते समय कुछ गणितीय चिह्नों का प्रयोग किया है । यथा '+' का चिह्न सन्धि के लिए है । '-' का चिह्न समास के लिए है । ' ( ) में मूल शब्द रखा है, और विभक्तियों को 1 / 1 ( प्रथमा एकवचन ), 2 / 1 ( द्वितीया एकवचन), 2 / 2 (द्वितीयाबहुवचन), 3 / 2 ( तृतीया बहुवचन) श्रादि गणितीय श्रंकों से दर्शाया गया है । एकवचन हरिः हरिम् हरिणा हरये हरे: हरेः हरी हरे एकवचन भूभृत भूभृतम् भूभृता भूभृते भूभृत: भूभृतः भूभृति हे भूभृत द्विवचन हरी हरी हरिभ्याम् हरिभ्याम् हरिभ्याम् हर्योः हर्योः हरी द्विवचन भूभृतो भूभृतौ भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् भूभृतोः भूभृतो: हे भूभृती बहुवचन हरयः हरीन् हरिभिः हरिभ्य: हरिभ्यः हरीणाम् हरिषु हरयः बहुवचन भूभृत: भूभृतः भूभृद्भिः भूभृद्भ्यः भूभृद्भ्यः भूभृताम् 83 भूभृत्सु हे भूभूतः (5) (3) (5)

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