Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 86
________________ मद्यपान के दुष्परिणाम संधिज्जतए सुहुमइँ सत्त तं जो घोट्टइ गायइ णच्चइ कविलाई बंद श्रभणिउ जंपइ जुवह लग्गइ भहउ वंक uss विहत्थहो छेरह हेर रुज्भइ बज्झइ मुच्छाजुत्तहो मुह लंघेवि भज्जगुणंतए होंति बहुत्सइँ सो रु लोट्टई । सुयr fres विहसइ कंपइ रंगइ वग्गइ माउं जि संगइ | गज्जइ रिकह रथह कत्थहो दारइ मारइ । जुज्झइ मुज्झइ । मंडल मुहे तहो । पुणु पुणु सुंघेवि । अर्थ - (नशीले) गुणों की वृद्धि करने के लिए मदिरा सड़ाई जाती है । तब उसमें बहुत से सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते हैं। जो मनुष्य इसे पीता है वह ( उन्मत्त होकर ) लोटता है, गाता है, नाचता है, सज्जनों की निन्दा करता है, कुत्तों की वन्दना करता है, हंसता है, बिना बुलाये बोलता रहता है, रेंगता है, कूदता है, युवतियों से लगता है, माता के संग लगने लगता है, भौंहें मरोड़ता है, गाता है, रेंकता है—व्याकुल होकर जहां कहीं पड़ ( गिर) जाता है । चिल्लाता है, पुकारता है, खोजता है, फाड़ता है, मारता है, अटकता है, बंधता है, जूझता है, घबराता है । मूच्छित हो जाता है, कुत्ते उसे लांघ जाते हैं, उसे बार-बार सूंघते है और उसके मुंह में मूत्र भी कर देते हैं । सुदंसणचरिउ 6.2

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