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जनविद्या
5. पुण्याश्रवकथाकोश
पुण्याश्रकथाकोश रामचन्द्र मुमुक्षु की रचना है। उन्होंने पुण्याश्रव-कथाकोश की प्रशस्ति में अपना संक्षिप्त परिचय दिया है । कन्नड भाषा का पाण्डित्यपूर्ण ज्ञान होने से उन्हें दक्षिण भारत का निवासी होना चाहिये । ये केशवनन्दि के शिष्य थे । पद्मनन्दि नामक प्राचार्य से उन्होंने व्याकरणशास्त्र का अध्ययन किया था। प्रशस्ति में प्रथम दो पद्यों से उक्त तथ्यों की सूचना मिलती है ।13 रामचन्द्र मुमुक्षु का समय विवादास्पद है । विभिन्न प्रमाणों के आधार पर डा. नेमिचन्द्र शास्त्री इनका समय तेरहवीं शताब्दी का मध्यभाग स्वीकार करते हैं ।।
___पुण्याश्रवकथाकोश 4500 श्लोकप्रमाण रचना है। कवि ने 57 पद्यों में इसका सारांश भी लिखा है । वैदर्भी शैली में निबद्ध इस कृति में पाराधना, दर्शन, स्वाध्याय, पंचनमस्कारमन्त्र आदि से सम्बद्ध कथाएं हैं। पंचनमस्कार मन्त्र की आराधना, के फल को प्रकट करनेवाले सुग्रीव, वृषभ, वानर, विन्ध्यश्री, अर्धदग्धपुरुष, सर्प-सर्पिणी, पंकमग्न हस्तिनी, दृढ़सूर्यचोर और सुप्रसिद्ध सुदर्शन श्रेष्ठी के वृत्तान्त इसमें वर्णित हुए हैं। 6. सुदर्शनचरित
विपुल काव्य प्रणयन की दृष्टि से सुदर्शनचरित15 के रचयिता भट्टारक सकलकीति का स्थान सर्वोत्कृष्ट पोर महत्त्वपूर्ण है । इनके पिता का नाम कर्मसिंह पौर माता का नाम शोभा या । ये हूंवड जाति के थे और प्रणहिलपुर पट्टन के निवासी थे। बलात्कार गण ईडर शाखा का प्रारंभ भट्टारक सकलकीति से होता है ।18 विभिन्न प्रमाणों से सकलकीति का समय चौदहवीं शती का अन्तिम चरण तथा पन्द्रहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध ठहरता है ।17 .- सुदर्शनचरित 8 सर्गों में विभक्त है । इसमें शीलव्रत के पालन में दृढ़ सेठ सुदर्शन का चरित वणित है । इसकी शैली उदात्त, भाषा प्रालंकारिक एवं सूक्तियों से समन्वित है। कथानक परम्परागत ही चित्रित हुमा है । 7. सुवर्शनचरित
संस्कृत भाषा में निबद्ध प्रस्तुत काव्य के रचयिता विद्यानन्दि ने प्रत्येक अधिकार की मन्तिम पुष्पिका में अपना नामोल्लेख किया है । ग्रन्थ की अन्त्यप्रशस्ति में गुरुपरम्परा का स्पष्ट एवं विस्तृत वर्णन हुआ है । इस प्राधार पर उनकी गुरु-शिष्य परम्परा इस प्रकार है-10
मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण कुन्दकुन्दाम्नायी
प्राचार्य प्रभाचन्द्र
पदमनन्दि
देवेन्द्रकीति
विद्यानन्दि (प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता)
मल्लिभूषण
श्रुतसागर
सिंहनन्दि
नेमिदत्त