Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 85
________________ जनविद्या 71 बिम्ब योजना उदात्त के लिए श्रेय है । नयनन्दी के काव्य में बिम्बों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । उनके यहां बिम्बों के सभी प्रकार - चाक्षुष, श्रोत्र, प्रास्वाद्य, घ्राण, स्पर्शबिम्ब, शब्द- बिम्ब, गहवर - बिम्ब, जटिल-बिम्ब, पूर्ण - अपूर्ण - बिम्ब, रस- बिम्ब, विराट-बिम्ब, प्रादि के प्रभूत उदाहरण प्राप्त होते हैं । नयनन्दी के बिम्बों का मूल स्रोत है ज्ञान । जैन साहित्य में संसार की नश्वरता एवं जन्म चक्र की भयावहता को प्रतिबिम्बित करनेवाले जिन चित्रों का वर्णन हुआ है उन सबको यहां प्रतिष्ठा प्राप्त है । भँवर, वात, जलचर, बड़वानल, लहर, धर्मरूपी रत्न, उपसर्ग, अग्नि, सिंह, सर्प, सिन्धु, फूल, शल्य, दीप, इत्यादि ऐसे बिम्ब हैं जिनके प्रतीक - गर्भत्व को इस काव्य में प्राध्यात्मिकता का नूतन परिधान प्रदान किया गया है । कुल मिलाकर इस सम्बन्ध में कवि ने जैन धर्म दर्शन के उदात्त रूप को भाव-सिद्धि प्रदान की है । इसके उदात्त में प्राद्योपान्त शास्त्रीयता की गुरु- गम्भीरता है, कवि हृदय की करुण - विगलता है तथा जीवन के कंटकाकीर्णं पथ पर ग्रांधी, पानी तथा वज्रपात में विषयों से विरक्त हो, शीत, शांति एवं क्षमा के प्रदीप को जलाये हुए सावधानी से एकाकी चलते हुए महामानव की भ्रमरगाथा है । यदि कवि ने 'कवि - शिक्षा' के हठयोग को कुछ कम कर भावयोग से काम लिया होता तो उनकी कृति उदात्त की सिद्धिसरणि प्रमाणित होती । O 1. प्राचार्य श्री जगदीश पाण्डेय - उदात्त, सिद्धांत और शिल्पन, श्रर्चना प्रकाशन, धारा, प्रथम संस्करण 1974 ई. 2. प्राचार्य श्री जगदीश पाण्डेय - उदात्त, सिद्धांत और शिल्पन |

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