________________
भारतीय भाषाओं में सुदर्शनचरित-विषयक साहित्य
-डॉ. जयकुमार जैन
जैन साहित्य में अनेक चरितकाव्य लिखे गये हैं। महावीर के समकालीन पंचम अन्तःकृत केवली सुदर्शन को भी अनेक कवियों ने अपनी लेखनी का विषय बनाया है । तद्विषयक साहित्य के विवेचन के पूर्व सुदर्शनचरित पर संक्षिप्त उल्लेख सर्वथा समीचीन होगा। जैन वाङ्मय में सुदर्शन का पावन प्राख्यान णमोकार (पंचनमस्कार) मन्त्र के माहात्म्य को प्रदर्शित करने के लिए गुम्फित किया गया है । यह मन्त्र जैन परम्परा में अनादि मूलमन्त्र के नाम से विख्यात है। इसमें जैनधर्ममान्य अर्हन्त, सिद्ध, प्राचार्य उपाध्याय एवं साधु का नमस्कारपूर्वक मंगल-स्मरण किया गया है। जैनधर्म के प्राणभूत इस मन्त्र को बहुत प्रतिष्ठा मिली है। सुदर्शन मुनि अपने पूर्वभवों की श्रृंखला में एक बार विन्ध्याचल पर एक भिल्लराज थे जिनका नाम व्याघ्र था। वहां से मरकर वे एक गोपाल के गृह में कूकर उत्पन्न हुए। यहीं से उनके जीवन में विस्तृत परिवर्तन हुआ ।. एक बार कानों में धार्मिक उपदेश सहसा ही पड़ जाने से उनका चित्त धर्म में प्रवृत्त हुमा और वे मरकर एक व्याध के यहां पुत्र हुए। मनुजभव की यह प्राप्ति कैवल्यप्राप्ति की सरणि बनी। वहां से शरीर त्यागने पर व्याधपुत्र का वह जीव पुण्यकर्मों के कारण चतुर्थभव में सुभग नामक एक ग्वाला हुमा । गाये चराते समय उसने एक दिगम्बर मुनिराज को देखा। श्रद्धा के वशीभूत होकर उसने उनकी वन्दना-स्तुति की। मुनिराज से प्राप्त णमोकारमन्त्र के प्रभाव से सुभग गोपाल ही अग्रिम