Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 72
________________ जनविद्या __घत्ता- एम वियप्पिवि जाम घिउ अविनोलचितु सुहवंसणु । प्रभयादेवि विलक्स हुय ता णियमणे चितइ पुणु पुण ॥ 8.32 (1) सुलहउ (सुलहन) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक पायालए (पायालम) 7/1 'अ' स्वार्थिक रणायणाहु [(णाल)-(णाय) 1/1] कामाउरे [(काम) + (प्राउरे)] [(काम)-(प्राउर) 7/1वि] विरहडाहु [(विरह) - (डाह) 1/1] .. गजलहरे [(णव) वि- (जलहर) 7/1] जलपवाहु [(जल) - (पवाह) 1/1] बहरायरे [(वइर) + (प्रायरे)] [(वइर) – (आयर) 7/1] वज्जलाहु [(वज्ज).(लाह) 1/1] • (2) कस्सीरए (कस्सीरम) 7/1 'अ' स्वार्थिक घुसिपिंडु [(घुसिण)-(पिंड) 1/1] माणससरे (माणससर) 7/1 कमलसंधु [(कमल)-(संड) 1/1] दीवंतरे [(दीव) + (अंतरे)][(दीव)-(अंतर) 7/1] विविहभंदु [(विविह](भंड) 1/1] पाहाणे (पाहाण) 7/1 हिरण्णखंदु [ (हिरण्ण)-(खंड) 1/1] (4) ___ मलयायले [(मलय)+ (अयल)] [(मलय) (प्रयल) 7/1] सुरहिवाउ [(सुरहि) वि-(वाउ) 6/1] गयणंगणे (गयणंगण) 7/1 उडुणिहाउ [(उडु)-(णिहान) 1/1] । (5) पहुपेसणे [(पहु)-(पसण) 7/1] कए (कम) भूकृ7/1 अनि पसाउ (पसाम) 1/1 ईसासे (ईसा-स) 7/1 वि जणे (जण) 7/1 कसाउ (कसाम) 1/11 (6) रविकंतमणिहि रविकंतमणिहि (रविकंतमणि) 3/2 हुयासु (हुयास) 1/1 वरलक्खणे [(वर)-(लक्खण) 7/1] पयसमासु [(पय)-(समास) 1/1] | (7) मागमे (मागम) 7/1 धम्मोवएसु [(धम्म) + (उवएसु)] [(धम्म)-(उवएस) 1/1] सुकईयणे [(सुकई)35-(यण) 7/1] मइविसेसु [(मइ)-(विसेस) 1/1] । (8) मणुयत्तणे (मणुयत्तण) 7/1 पिउ (पिन) 1/1 वि कलत्तु (कलत्त) 1/1 पर प्र =किन्तु एक्कु (एक्क) 1/1 वि जि (अ) ही दुल्लहु (दुल्लह) 1/1 वि पइपवित्त (अइपवित्त) 1/1 वि। (9) बिणसासणे [(जिण)-(सासण) 7/1] जं (ज) 2/1 स ग (म)=नहीं कया वि अ =कभी भी पत्तु (पत्त) भूकृ 1/1 अनि किह (अ)=कैसे जासमि (णास) व 1/1 सक तं (त) 2/1 स चारित्तवितु [(चारित्त)-(वित्त) 2/1] | (10) 35. समास में दीर्घ हुआ है, (हे. प्रा. व्या, 1-4)।

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