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जनविद्या
प्राचीन अंगदेश की राजधानी चम्पानगरी (वर्तमान बिहार-राज्य में स्थित प्रमण्डलीय नगर भागलपुर की उपनगरी) के सेठ ऋषभदास की सेठानी अर्हद्दासी से उत्पन्न पुत्र देखने में अतिशय सुन्दर था, इसलिए उसका नाम सुदर्शन रख दिया गया। युवावस्था में उसके मदनमनोहर रूप को देख नगर की नारियां उस पर मोहासक्त हो जाती थीं । एक दिन सुदर्शन ने अपने घनिष्ठ मित्र कपिल के साथ नगर-भ्रमण के क्रम में मनोरमा नाम की अपूर्व सुन्दरी युवती को देखा । दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गये । अन्त में, सुदर्शन और मनोरमा के माता-पिता की इच्छा से दोनों का विधिवत् विवाह कर दिया गया ।
संयोग ऐसा हुआ कि सुदर्शन के मित्र कपिल की पत्नी कपिला उस . (सुदर्शन) पर मोहित हो गई । कपिला ने छल से सुदर्शन को अपने यहां बुलाया और उससे काम-याचना की। किन्तु सुदर्शन ने नपुंसक होने का बहाना बनाकर मित्रपत्नी के कामाचार से अपना पिण्ड छुड़ाया।
एक बार वसन्त में उद्यान-यात्रा के क्रम में चम्पानरेश की पुत्रहीन रानी प्रभया ने सुदर्शन सेठ की पुत्रवती पत्नी मनोरमा को देखा तो उसे भी उस सेठ से अपने पुत्र की उत्पत्ति की कामना जाग उठी। इस कार्य के लिए कामान्ध रानी ने अपनी पण्डिता नाम की सखी से सहायला मांगी। सुदर्शन सेठ प्रत्येक अष्टमी तिथि को श्मशान में जाकर कायोत्सर्ग (ध्यानविशेष) किया करता था। एक दिन जब वह ध्यानलीन था, तभी पण्डिता उसके पास पहुंची और विभिन्न कामोद्दीपक प्रलोभनों द्वारा उसने उसे ध्यानच्युत करने की चेष्टा की। किन्तु इस असत्प्रयास में जब वह असफल हो गई तब सुदर्शन को सशरीर उठाकर रानी के शयनागार में ले गई । वहां भी सुदर्शन अपने ध्यान से तिलमात्र भी विचलित नहीं हुमा । तब रानी ने एक कपटजाल रचा। उसने स्वयं अपने शरीर को क्षत-विक्षत कर शोर मचा दिया कि सेठ सुदर्शन ने उसका बलात् शीलहरण किया है। राजा धात्रीवाहन (धाड़ीवाहन) ने सेठ को प्राणदण्ड की प्राज्ञा दी। राजपुरुष सेठ सुदर्शन को पकड़कर श्मशान ले गये । सुदर्शन सेठ स्वभावतः धर्मध्यान में लीन था । वधिकों ने जब उस पर शस्त्रप्रहार किया तब व्यन्तर देव ने प्राकर शस्त्र को स्तम्भित कर दिया । इस प्रकार, धर्म के प्रभाव से सुदर्शन सेठ के चरित्र और प्राण, दोनों की रक्षा हुई।
राजा धात्रीवाहन को रानी प्रभया के कपटजाल का जब पता चला तब वह निर्वेद से भर उठा । उसने सुदर्शन सेठ की शरण में जाकर क्षमा याचना की और अपना प्राधा राज्य उसे देने का वचन दिया । सुदर्शन सेठ ने राजा को अभयदान दिया और उसके राजवैभव को ठुकराकर मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली। राजा के घर लौटने से पूर्व ही रानी अभया ने प्रात्मघात कर लिया और मरकर वह पाटलीतुत्र नगर में व्यन्तरी (बेताल) हो गई। रानी की सखी पण्डिता भी भागकर पाटलीपुत्र चली गई और वहाँ देवदत्ता नाम की गणिका के घर रहने लगी।
मुनि सुदर्शन भी तपोविहार करते हुए पाटलीपुत्र पहुंचे । पण्डिता से परिचय पाकर, देवदत्ता गणिका ने सुदर्शन मुनि को घर में ले जाकर बन्द कर दिया और अपनी उद्दीपक कामचेष्टाओं से मुनि के व्रत भ्रष्ट करने के अनेक उपाय किये । अन्त में, निराश होकर गणिका