Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 45
________________ जनविद्या 31. ने उन्हें ले जाकर श्मशान में डाल दिया । वहां पूर्वभव की रानी अभया ने पूर्व द्वेषवश व्यन्तरी के रूप में उपस्थित होकर मुनि सुदर्शन के चारों ओर घोर उपसर्ग (विघ्न) करना प्रारम्भ किया । अन्त में वह पराजित होकर भाग गई । सुदर्शन मुनि ने अपने ध्यान-तप के बल से चार घाति कर्मों (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय) का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त किया। यह सब चमत्कार सुदर्शन मुनि द्वारा पंचनमस्कार-मन्त्र के ध्यानपूर्वक जप करने के प्रभाव से ही हुमा । इस प्रकार, पंच-नमस्कार-मंत्र का माहात्म्य वर्णन कर गौतमस्वामी ने राजा श्रेणिक से कहा कि कोई भी नर-नारी इस मन्त्र की आराधना द्वारा सांसारिक वैभव पौर मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है । __ प्रस्तुत ग्रन्थ के कथानक से स्पष्ट है कि इसकी केन्द्रीय घटना एक स्त्री का पर-पुरुष पर मोहासक्त होकर उसका प्रेम प्राप्त करने के निमित्त उत्कट रूप में प्रयत्नशील होना है। कथाकोविद मुनि नयनन्दी ने अपने कालजयी काव्य 'सुदंसणचरिउ' की इसी मूलकथा को काव्यवैभव के परिवेश में बड़ी आकर्षक रीति से पल्लवित किया है । यथाप्रसंग द्वीप, देश, नगर, राजा, राजवंभव आदि के मनोरम वर्णन, प्रकृति के मोहक चित्रण, रत्यात्मक श्रृंगार के उद्भावन, निर्वेदात्मक शान्तरस के प्रस्तवन आदि में कुशल कवि ने विषय की उपस्थापना के अनुकूल विभिन्न छन्दों की रचना की है। कवि नयनन्दी द्वारा प्रयुक्त छन्द मुख्यतः चार प्रकार के हैं मात्रिक, वाणिक, मात्रिक विषमवृत्त तथा वाणिक विषमवृत्त । सन्धि के क्रम से विभिन्न छन्दों की योजना इस प्रकार हैसन्धि 1-पद्धडिया, अलिल्लह (अरिल्ल, अलिल्ल, अडिल्ल), पादाकुलक, भुजंगप्रयात, प्रमाणिका और शशितिलक । सन्धि 2-अलिल्लह, पद्धडिया, मध्यम, रसारिणी, चित्रलेखा, विद्युल्लेखा, करिमकरभुजा पौर त्रोटक । सन्धि 3-रमणी, मन्दाक्रान्ता, शार्दूलविक्रीडित, पद्धडिया, अलिल्लह, मालिनी, मत्तमातंग, दोधक, कामबाण और समानिका । सन्धि 4-मदनविलास, अलिल्लह, त्रोटनक, पादाकुलक, मदन, मदनावतार, प्रानन्द, इन्द्रवज्रा, उपजाति, उपेन्द्रवजा, मंजरी, खण्डिका प्रौर गाथा। सन्धि 5-पद्धडिया, अलिल्लह, चप्पइ, मौक्तिकदाम, चन्द्रलेखा मोर वसन्तचत्वर । सन्धि 6-पद्धडिया, मधुभार, तोमरेख, अलिल्लह, हेला, मन्दचार, अमरपुरसुन्दरी, कामबाण, चन्द्रलेखा, रत्नमाला, पादाकुलक, मदन पौर मदनावतार । सन्धि 7-वंशस्थ, अलिल्लह, मागधनकुटिका, मदनावतार, उर्वशी, कामलेखा, पद्धडिया, शालभंजिका, विलासिनी और दिनमणि । सन्धि 8-वसन्तचत्वर, पद्धडिया, पथ्या, परपथ्या, विपुला, गाथा, दोहा, पादाकुलक, कामावतार, चित्रलेखा, विलासिनी, सारीय, उष्णिका, चित्रा, चारुपदपंक्ति,

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