Book Title: Jain Vidya 07
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 62
________________ 48 जनविद्या मूल्यों के प्रति निष्ठा का द्योतक है । ऐसे मूल्यात्मक प्रसंगों का सुदंसणचरिउ में से चयन करके हमने उनका व्याकरणिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इससे जहां एक मोर मूल्यात्मक जीवन में प्रास्था रढ़ होगी, वहीं दूसरी ओर अपभ्रंश भाषा के व्याकरण को प्रयोगात्मक रूप से समझने में सहायता मिलेगी। व्याकरणिक विश्लेषण में जिन संकेतों का प्रयोग किया गया है वे अन्त में दे दिये गए हैं । मूल्यात्मक प्रसंगों का अनुवाद भी किया गया है । व्याकरण और अनुवाद एक दूसरे से संबंधित होते ही हैं। प्रायणि पुत्त बह प्रागमे सत्त वि वसण वृत्त । सप्पाइ दुक्खु इह दिति एक्क भवे दुम्पिरिक्खु । विसय विरण भंति जम्मतरकोरिहिं दुहु वर्णति । चिक रद्दवत्तु णिवडिउ गरयग्णवे विसयबुतु। बढु मायरेण जो रमइ जूउ बहुउफ्फरेण। 5 सो च्छोहजुत्त पाहणइ जणणि सस घरिणि पुत्तु। जूयं रमंतु गलु तह य बुहिडिल्लु विहरू पत्तु । मंसासणेण बढेइ वपु बप्पेण तेल । महिलसइ मज्जु जूउ वि रमेइ बहुबोससज्जु । . पसरह प्रकित्ति ते कज्जे कोरइ तहो णिवित्ति। 10 जंगलु मसंतु वणु रक्खसु मारिउ परए पत्तु । महरापमत्तु कलहेप्पेण हिंसइ टुमित्तु । रच्छहे पडेइ उग्भियकर विहलंघलु गई। होता सगव्य गय जायव मज्जें खयहो सब्य । साइणि व वेस रत्तापरिसरण परिसइ सुवेस। 15 तहो जो बसेइ सो कायर उच्छिउ प्रसेइ । वेसापमत्तु णिवणु हुउ इह वणि चाववतु । कयवीरगवेसु णासंतु परम्मुहु छट्टकेसु । जे सूर हॉति सवरा हु वि सो ते गउ हणंति । वणे तिण चरंति गिसुणेवि सडक्कउ गिर रंति। 20 वरणमयउलाइ किह हणइ मूढ़ किउ तेहिं काइ । पारविरत्तु पक्कबह गरए गउ बंभवत् । चलु चोर पिट्ठ गुरुमायबप्पु माणइ न इट्ट । रिणय भयबलेण बंचा ते अवर वि सो छलेण । भयकवि तु गउ गिद्दभक्खु पावेइ मूढ़। 25 परिय एह सुपसिद्धी गामें विज्जलेह । पत्ता-पावेज्जइ बंधेवि णिज्जइ विस्थारेवि रहे बच्चरे । वंडिज्जइ तह खंडिज्जइ मारिज्जइ पुरवाहिरे ॥ 2.10

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