Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 15
________________ [* अन्य प्रसंगों में पूजा के वस्त्रों को नहीं पहने । सामायिक में पूजा के वस्त्रों का प्रयोग अयोग्य * पूजा के वस्त्रों को पहनकर कुछ खा-पी नहीं सकते, यदि भूल से कुछ खाया-पीया हो तो फिर उस वस्त्रों का पूजा के लिये उपयोग न करें । * घर से स्कूटर या वाहनों पर बैठकर, चप्पल या जूते पहनकर मंदिर में पूजा करने जाना वह उचित नही है। * पूजा के वस्त्र उत्तम किस्म (रेशमी वगैरह) के हों । रेशमी कपडे गंदगी को जल्दी नहीं पकड़ते। साथ ही भाववर्धक होने से पूजा के लिये उत्तम गिने हैं । इसी हेतु अंजनशलाका के समय आचार्य भगवंत के लिये भी रेशमी वस्त्र परिधान का विधान है। घर में M.C. में बच्चों को भी रेशमी वस्त्र पहनाते थे। * घर, गाड़ी, तिजोरी वगैरह की चाबियों को साथ में रखकर पूजा नहीं करनी चाहिये । पूजा करते समय घड़ी नहीं पहननी चाहिये । * पूजा के वस्त्रों में कोई छिद्र अथवा फटे हुए नहीं होने चाहिये। पैरे धोने की विधि * छाने हुए पानी से, भरी बाल्टी में से, ग्लास से आवश्यकतानुसार पानी लेकर पाँव धोंवे । नल से सीधे पाँव नहीं धोवे । प्रथम निसीहि बोलने की विधि * मंदिर के मुख्य द्वार पर (एक या) तीन बार निसीहि बोलकर प्रवेश करें । निसीहि अर्थात् निषेध यानि संसार से संबंधित समस्त बातों को पूरी तरह छोड़ देना । मंदिरजी में प्रवेश करने की विधि * प्रभु पर दृष्टि पड़ते ही दोनों हाथ जोड़कर मस्तक से लगाकर सिर झुकाकर धीमी आवाज में 'नमो जिणाणं' बोलते हुए अंजलिबद्ध प्रणाम करना । * विद्यार्थी अपना बस्ता तथा अन्य व्यक्तिगत खाने-पीने की चीजें बाहर रखकर फिर मंदिरजी में प्रवेश करे। * जिनमंदिर में और गंभारे में जिमना (दाहिना) पैर रखते हुए प्रवेश करें। * जूते के साथ-साथ पैर के मौजे भी उतार कर प्रवेश करें। 13

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