Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 69
________________ बजाय क्यों न हम जामुनों से लदी-फदी छोटी डालियाँ काट लें। हमें जामुन खाने से मतलब है, न कि टहनियाँ तोड़ने से । और फिर जामुन तो छोटी डालियों पर लगे हुए है। यह विचार कापोतलेश्या गर्भित है । चित्र में तृतीय क्रमांक के पुरुष को कापोत (कपोत) = कबूतर जैसा अल्प श्यामवर्ण वाला दिखाया है । जो वृक्ष की छोटी-छोटी डाली को काट रहा है। इस संसार में अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु अन्य जीवों को होने वाली कम ज्यादा हानि की जरा भी परवाह न करने वाले कापोतलेश्या गुण धर्म वाले कई जीव है । शास्त्र ग्रंथों में उपरोक्त तीनों ही लेश्याओं को अशुभ माना गया है। जिस तरह उनके वर्ण अशुभ है, उसी तरह उनके रस-गंधादि स्वभाव धर्म भी अशुभ है । इतने में चौथे पुरुष ने कहा: यह तो सब ठीक है। लेकिन हमें केवल जामुन खाने से मतलब है । तब वृक्ष की छोटी-छोटी शाखाएँ तोड़ने से क्या लाभ? उसके बजाय जामुन के गुच्छे ही तोड़कर हम काम चला सकते हैं। इससे जामुन भी जी भर खा लेंगे और शाखाएँ तोड़ने का सवाल भी खड़ा नहीं होगा । यह विचार तेजोलेश्या से गर्भित है । हमारे स्वार्थ के लिये संसार के किसी अन्य जीव अथवा प्राणी को बड़ा अथवा मध्यम नुकसान न पहुँचे। इसकी सावधानी बरतनेवाले जीव तेजो लेश्या से युक्त होते हैं। तभी चित्र में चौथे क्रमांक में उगते सूर्य के प्रकाश सदृष्य रक्तवर्णीय पुरुष दिखाया है । उसमें से पाँचवे ने गंभीर स्वर में कहा : सो तो ठीक है। किंतु हमें जामुन के गुच्छे का भी कोई प्रयोजन नहीं है, बल्कि हमारा प्रयोजन रस भरे बड़े-बड़े जामुनों से है । ऐसी स्थिति में ताजे जामुन ही क्यों न चुन लें । उक्त विचार पद्मलेश्या का द्योतक है। संसार में कई जीव ऐसे होते हैं, जो अपने स्वार्थ के लिये अन्य जीवों की अल्प प्रमाण में भी हानि न हों इस बात की सावधानी बरतते हुए जीवन व्यतीत करते हैं। वह पद्मलेश्या का ही साक्षात् प्रतीक है। चित्र में पाँचवे क्रमांक में इसी आशय को प्रदर्शित करने के लिये कमल पुष्प की भाँति हल्के पीले वर्णवाला पुरुष दर्शाया है, जो जामुन चुन रहा है। किंतु उन सब के मतों को सुनकर छड़ें पुरुष ने शांत स्वर में कहा : भूमि पर गिरे पके हुये जामुन फलों का आहार कर जब हम तृप्त हो सकते हैं तब अधिक फलों की आवश्यकता हीं नहीं रहती। ऐसी दशा में फल तोड़कर पाप करने से क्या लाभ? यह विचार शुक्ल लेश्या गर्भित है । अन्य जीवों को लेश मात्र भी हानि न हों और स्वयं की स्वार्थ सिद्धि भी सरलता से हो जाए। संसार में इस विचार के कई जीव होते हैं । ऐसे अध्यवसायवाले जीव शुक्ल लेश्या वाले माने जाते हैं । इसी आशय को प्रकट करने के लिये छ चित्र में श्वेत वस्त्रधारी पुरुष को भूमि पर पडे जामुन फल चुनता हुआ दिखाया गया | T छ: लेश्याओं में से तेजो पद्म एवं शुक्ल लेश्यादि तीन की गणना शुभ लेश्या के अंतर्गत होती है । क्योंकि इनका गुणधर्म यह है कि अन्य जीवों को अति, मध्यम या अल्प प्रमाण में भी हानि नहीं पहुँचे । जबकि कापोत नील एवं कृष्ण लेश्याओ का उल्लेख अशुभ लेश्या के अंतर्गत होता है। इनका अध्यवसाय और गुणधर्म अन्य जीवों को अधिकाधिक कष्ट तथा नुकसान पहुँचाता है। उपरोक्त दृष्टांत से विश्व में रहे समस्त जीव-प्राणियों के शुभाशुभ अध्यवसायों की कोमलता एवं कठोरता का मूल्यांकन भली-भांति कर सकते हैं । 67

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