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सत्य बोलने का कितना प्रभाव है ।
हमें भी असत्य का त्याग करके सत्य वचन ही बोलना चाहिये...झूठ मत बोलो ।
सच्चा बोलो....अच्छा बोलो...मीठा बोलो.......
" सत्यं वद प्रियं वद । नैव वद सत्यमप्रियं " अप्रिय (जैसे अंधे को अंधा कहना) हो और अहितकारी हो (जैसे अगर राजा हंस मुनि की सही दिशा चोरों को बता देते) ऐसा सत्य वचन भी असत्य गिना जाता है।
C. भावी तीर्थंकर ग्वाले देवपाल की कथा
भरतक्षेत्र संस्कारों से भरपूर क्षेत्र है । इसकी भूमि पवित्र है । इस पवित्र भूमि पर कई महापुरुषों ने जन्म लेकर विश्व का कल्याण करने के लिए विचरण किया है। यह भूमि रत्नों की खान है। इसकी रज (रेत) में सौरभ तथा संस्कार के बीज है । यह अनेक मनमोहक नगरों से सुशोभित है । भरतक्षेत्र का अचलपुर नगर सचमुच अचल था । इसका यह नाम भाव सूचक था। अनेक उदार तथा गुणसंपन्न धन कुबेर यहाँ बसते थे । देव-गुरु-धर्म की यहाँ अच्छी प्राप्ति थी। लोग लक्ष्मी के पुजारी नहीं, किंतु गुणों के पुजारी थे। ऐसा अचलपुर सौ कलाओं से विभूषित था। जिसकी सत्ता तथा कीर्ति, न्याय तथा नीति, गुण तथा धर्म चारों दिशाओं में फैले हुए थे । यशोगाथा जिसकी चारों ओर गाई जा रही थी, ऐसा प्रजा वत्सल तथा प्रतापी सिंहरथ नाम का राजा राज करता था, जिसके रूप-रंग युक्त तथा गुणों से अलंकृत कनकमाला तथा शीलवती नाम की दो रानियाँ थी तथा मनोरमा नाम की एक पुत्री थी। पुत्री रूप की अंबार गुणों का भंडार भी थी। गुण बिना का केवल रूप किसी समय अनर्थ कर देता है । अत्यंत कठिनाई में डाल देता है ।
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उसी नगर में राजा का अत्यंत मान प्राप्त जिनदत्त नाम का सेठ रहता था। वह दयालु, उदार तथा मानवता के गुणों से विभूषित था । दुःखी जनों के दुःखों का साथी था । गरीबों के लिए उसके भंडार खुले थे । ऐसे करुणावान जिनदत्त सेठ के एक क्षत्रिय वंशी तथा कृतज्ञ देवपाल नाम का नौकर ढोर चराने का काम करता था । उस सेठ के परिचय से वह जैन धर्म की ओर श्रद्धालु बना था, तथा जंगल में एक बार सद्गुरुओं के समागम से जैन धर्म तथा अरिहंत का स्वरूप उसने समझा था । विश्व के सभी धर्मों से जैनधर्म उच्च तथा संपूर्ण है, ऐसी समझ उसके खून के प्रत्येक बूँद में थी । धर्म रहित जीवन उसको निष्फल लगता था । जीवन को किस प्रकार जीना, यह सिखाने वाला यदि कोई है तो धर्म कला है, ऐसी श्रद्धा उसके दिल में पक्की हो गई थी। उत्तम व्यक्तियों के संसर्ग से मानव क्या नहीं पा सकता ? अथवा तो कहना चाहिए कि कल्याण इच्छुक आत्माएँ सब कुछ पा सकती है ।
वर्षा ऋतु का दिन था । आकाश में बादल छाएँ हुए थे । मेघ सिंह की तरह गर्जना कर रहे थे । बिजली आकाश में थोडी थोडी देर के बाद चमक रही थी । मूसलाधार वर्षा हो रही थी । पानी खूब जोरदार
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