Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 102
________________ अरे, वह हमारे महाराजा अर्जुन का दुश्मन है हम उसे पकड़ने के लिये तलाश कर रहे है । जिन्दा या मरा हुआ हम उसे पकड़कर अपने राजा के पास ले जाना चाहते हैं । राजा ने अपने मन में सोचा वैसे भी यह जीवन एक दिन समाप्त हो जाने वाला है..इस असार जीवन का क्या मोह रखना ? क्यों झूठ बोलना? उसने कहा : 'सैनिकों, मैं खुद ही राजा हंस हूँ....' और कमर में छुपाई हुई तीक्ष्ण कटारी हाथ में लेकर वह खड़ा रहा । मन में श्री नवकार मंत्र का स्मरण करने लगा। सैनिक लोग एक कद आगे बढ़े ही थे, राजा को पकड़ने के लिये कि इतने में आकाश में ढोल-नगारे बजने लगे..फूलों की बारिश होने लगी, आकाशवाणी हुई : 'ओ सत्यवादी राजा, तेरी जय हो...तेरी विजय हो ।' एक तेजस्वी देव वहाँ प्रगट हुआ...उसने हंसराजा से कहा : 'ओ सत्यशील पराक्रमी राजा, तेरी सत्यवादिता से मैं तेरे पर प्रसन्न हुआ हूँ । मैं इस वन का अधिष्ठायक यक्षराज हूँ। इन दुष्ट सैनिकों को यहीं पर बांधकर रखता हूँ। और तू आ, मेरे इस विमान में बैठ जा...तुझे जिस तीर्थ की यात्रा करनी है....जिन भगवान ऋषभदेव के दर्शन करना है...वहाँ हम दोनों चलेंगे।' राजा हंस भावविभोर हो उठा । विमान में बैठ गया । छत्रधर से उसने कहा...'तू घोड़े को लेकर अपने नगर में चला जा...मैं वहाँ पहुँच जाऊँगा।' यक्षराज ने राजा को अपने ही आसन पर पास में बिठाया । अल्प समय में ही विमान 'रत्नश्रृंग' पर्वत पर उतरा । यक्षराज ने भगवान ऋषभदेव की नयनरम्य प्रतिमा के समक्ष दिव्य नृत्य किया। दिव्य नाटक किये । राजा ने बड़े उल्लास व भक्ति से स्तवना की। __ यात्रा कर के यक्षराज के साथ राजा, उस जगह पर वापस लौटा, जहाँ पर कि यक्षराज ने उस शत्रु सैनिकों को बंदी बनाकर रखे थे। राज ने उनके बंधन खोल दिये । यक्षराज ने अपने चार आज्ञांकित यक्षों को बुलाकर आज्ञा की कि, तुम्हें हमेशा उस सत्यवादी राजा की सेवा करनी है...इसे प्रसन्न रखना है । उसके शत्रुराजा को भगाकर, उसका राज्य वापस उसे दे देना । यक्षराज ने हंसराजा की विदाई ली और वह अदृश्य हो गया। हंसराजा को उठाकर यक्षसेवकों ने राजपुरी के राजमहल में रख दिया। शत्रुराजा अर्जुन को तो उन्होंने पहले से ही मार भगाया था। नगर के लोगों ने अपने असली राजा के दर्शन करके भारी हर्ष व्यक्त किया । बड़ा महोत्सव मनाया । हंसराजा का आयुष्य पूरा हुआ। ___ मर कर के वह देवलोक में देव हुआ। (100

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