Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 109
________________ किसी द्वेषी ने दिल्ली के बादशाह फिरोजशाह तुगलक के कान भरे कि महणसिंह के पास लाखों रुपयों की विपुल धनराशि है । किसी न किसी बहाने से उसे दंडित करके इसका धन हडप लो। बादशाह फिरोजशाह ने महणसिंह को उपस्थित होने का आदेश दिया । उन्होंने महणसिंह को प्रश्न किया " तुम्हारे पास कितना धन है ?" श्रावक महणसिंह ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया, "जहाँपनाह ! मुझे गिनती करनी पडेगी । कल मैं सारा धन गिनकर आपको निवेदन कर दूंगा ।" अपनी संपत्ति की गणना करके महणसिंह बादशाह फिरोजशाह के पास आया और कहा "मेरे पास चौरासी लाख की पुरानी मुद्राएँ है।'' बादशाह महणसिंह की ऐसी सच्चाई पर खूब प्रसन्न हुए। उन्होंने एक पाई भी नहीं छिपाई थी । बादशाह ने महणसिंह को सोलह लाख मुद्राएँ राजकोष में से देकर उन्हें करोडपति बना दिया । महणसिंह के प्रति द्वेष महसूस करने वाले बादशाह के मन में आदर का सागर उमड पडा । अपने राज्य में करोडपति बसते हैं, इस बात का गौरव बादशाह को लेना था । बादशाह ने अपने हाथों से उनकी हवेली पर "कोटी ध्वज'' फहराया । पूज्य मुनिवरों तथा महणसिंह के परिवार का सम्मान किया । एक बार बादशाह को अन्य प्रदेश में जाने का हुआ तब अपने रिसाले में महणसिंह को भी साथ में लिया । रास्ते में सूर्यास्त होने में थोडा समय शेष था अत: महणसिंह ने अपने घोडे को एक ओर ले जाकर अपने पास रखे हुए प्रतिक्रमण के उपकरण निकालें । चरवले से भूमि का प्रमार्जन करके कटासना बिछाया और प्रतिक्रमण करने लगे। दिन भर में जानते-अजानते मन-वचन-काया से जो कोई भी पाप हुए हो तो उनकी शुद्ध भाव से क्षमा माँगी । प्रतिक्रमण पूर्ण हो जाने पर वे बादशाह के साथ होने के लिए आगे बढें। दूसरी ओर रिसाला आगे बढाता हुआ बादशाह दूसरे गाँव में पहुँचा, तब रिसाले के साथ महणसिंह को नहीं देखा । उनकी खोज करने के लिए सैनिकों को चारों ओर भेजा । महणसिंह को क्या हुआ होगा ? इसकी भारी चिंता सताने लगी । इतने में महणसिंह अपने अश्व पर आ पहुँचे । बादशाह ने पूछा - "महणसिंह ! आप कहाँ थे ? आपको खोजने के लिए मैंने लोगों को दौडाया है ।'' महणसिंह बोलें "जहाँपनाह ! मेरे विषय में इतनी चिंता करने के लिए आपका मैं बडा आभारी हूँ। लेकिन मैं जहाँ था वहाँ पर सुरक्षित था, मेरा नियम है कि सूर्यास्त का समय हो जाए तब जिस स्थान पर मैं होता हूँ वहीं पर प्रतिक्रमण करना । बरसों से मैं इस नियम का अचूक पालन करता चला आ रहा हूँ। (बच्चों! इन महणसिंह की प्रतिक्रमण नियम की कैसी दृढता ! जिस प्रकार मुसलमानों के नमाज का समय होता है तब वे जहाँ होते हैं, वहीं नमाज पढने बैठ जाते हैं, उसी प्रकार महणसिंह भी वहाँ जिस जगह पर थे, वहीं प्रतिक्रमण करने बैठ गए, उसी प्रकार हमे भी पाठशाला और धार्मिक पढाई का समय आदि का ध्यान रखना चाहिए। स्कूल और परीक्षा का बहाना लेकर छोड नहीं देना चाहिए।)" इस प्रकार जंगल में आप अकेले बैठो, तो उससे प्राणों को कितना खतरा होता है इसका आपको अनुमान नहीं है । अपने शत्रुओं का पार नहीं है और वैर लेने के लिए वे चारों और घूम रहे हैं। आपको पकड कर मार डालें तो क्या होगा? आप भविष्य में - ऐसा साहस न करें।'' महणसिंह ने कहा "धर्म के लिए जीवन है । धर्म करने से मृत्यु आ जाए तो वह भी (107

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