Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 97
________________ मुनिराज को भावपूर्ण वंदना कर, राजा-प्रजा सभी उपदेश सुनने के लिये विनयपूर्वक बैठे । । केवलज्ञानी महर्षि का उपदेश सुन, सभी आनंदित हुए । राजा ने खड़े होकर विनय से पूछा : ___ हे श्रेष्ठज्ञानी गुरुदेव, मेरे पास जो दो नये हाथी आये हैं, वे आपस में लड़ते रहते हैं...प्रभो, इसका क्या कारण है? राजन्, कषाय ही कारण है । एक जीव है तेरे पिता राजा शत्रुजय का और दूसरा जीव है तेरे भाई सूर्यकुमार का । मुनिराज ने उन दोनो के जन्मों की करुण कथा सुनाई । राजा चन्द्र संसार के प्रति विरक्त हो गया। ___राजकुमार का राज्याभिषेक कर, चन्द्र राजा ने दीक्षा ले ली । उग्र तपश्चर्या की । आयुष्य पूर्ण कर वे देवलोक में देव हुए। वे दोनों हाथी लड़ते रहे । मर कर पहली नरक में पैदा हुए। चन्द्रराजा का आत्मा, देवलोक का आयुष्य पूर्ण कर पुन: श्रेष्ठ मनुष्यजन्म प्राप्त करता है, साधु बनता है, तपश्चर्या से सभी कर्मों का नाश कर अनन्त सुखमय मोक्ष को पाता है। चन्द्र राजा को संसार के श्रेष्ठ सुख और मोक्ष के परम सुख अहिंसा-धर्म के पालन से प्राप्त हुए । इसलिये प्रथम अणुव्रतका सुचारु रूप से पालन करना चाहिये। B. राजा हंस (द्वितीय व्रत) सत्यमेव जयते सत्य - 1) अच्छा (भला) बोलना, 2) सच्चा बोलना, 3) मीठा बोलना राजपुरी नगरी के राजा का नाम था हंस । हंस राजा प्रजा वत्सल था, धर्मप्रिय था और पराक्रमी था । उसे सत्य बोलने की दृढ़ प्रतिज्ञा थी। हंसराजा के पूर्वजों ने रत्नश्रृंग नाम के पर्वत पर भगवान ऋषभदेव का सुंदर जिनमंदिर बनवाया था। वहाँ प्रति वर्ष चैत्र महीने में बड़ा भारी उत्सव मनाया जाता । हंसराजा भी हर साल उस उत्सव में शामिल होता और खुशी मनाता। ___एक बार कुछ एक राजपुरुषों के साथ हंस राजा, भगवान ऋषभदेव के दर्शन करने के लिये रत्नश्रृंग पर्वत की ओर चला। ___ अभी आधा रास्ता ही तय किया था कि इतने में भागम्भाग करते हुए आये एक घुड़सवार ने राजा को प्रणाम करके समाचार दिये, महाराजा, आपके जाने के पश्चात् दस दिन के बाद आपके शत्रु राजा अर्जुन ने नगर पर आक्रमण 95

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