Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ स्वागत किया । लाख लाख धन्यवाद दिये । कुंभ डाकू ने चोरी का सारा माल...राजा को सुपुर्द कर दिया । कुंभ को चन्द्रकुमार ने अपना विश्वासपात्र सहायक सेनानायक नियुक्त किया। ****** जयपुर में चन्द्रकुमार का बड़ा भाई सूर्यकुमार युवराज था । उसके दुष्ट मित्र सूर्य को उकसाया करते - 'कुमार तुम राजा कब बनोगे? युवराज पद पर ही बूढ़े हो जाओगे?' सूर्य दीन होकर कहता : क्या करूं ? यह बूढ़ा राज्य छोड़ता नहीं है...और मरता भी नहीं है... ऐसे नहीं मरेगा बूढ़ा....कुमार, रात्रि के समय पहुँच जा उसके शयन कक्ष में और... परंतु कुछ बोला नहीं, परंतु उसके मन में पिता का वध करने की पापवृत्ति पैदा हो गई । दिनप्रतिदिन यह पाप विचार दृढ़ होता गया । राजा बनने की इच्छा प्रबल होती चली गयी। एक रात्रि में एक छोटा तीक्ष्ण छूरा लेकर वह राजा के शयनकक्ष में पहुँच गया । राजा जयसेन सोये हुए थे । सूर्य ने राजा के गले पर छूरे से प्रहार कर दिया । जैसे ही सूर्य ने प्रहार किया, पास में सोई हुई रानी की आँखें खुल गयी । उसने सूर्य को देख लिया । पहले सूर्य को पहचाना नहीं..वह जोर-जोर से चिल्लाई..'सैनिकों, जल्दी आओ..वह पापी हत्यारा जा रहा है...' द्वार पर खड़े सैनिक अंदर आ गये । उन्होंने सूर्यकुमार को पकड़ लिया । रानी ने तुरंत ही अपना दुपट्टा राजा के घाव पर बांध दिया । राजा ने कहा : 'यह घातक कौन है, यह जान लो पहले । उसका वध मत करो' रानी ने कहा : प्राणनाथ, घातक दूसरा कोई नहीं है, आपका लाड़ला सूर्य है। सैनिकों, इस कुलांगार को मैं देशनिकाला देता हूँ । उसको मरे राज्य से बाहर कर दो। सैनिकों ने सूर्य के हाथों में बेड़ियाँ डाल दी । वैद्यों ने आकर राजा का घाव साफ किया और औषधोपचार किये। राजा ने मंत्रीमंडल को बुलाकर कहा : अब मेरे जीवन का अंत निकट है। आप लोग चन्द्रकुमार की तलाश करो । वह जहाँ भी हो, वहाँ से यहाँ ले आओ । मैं उसको मेरा उत्तराधिकारी बनाऊँगा। मंत्रीमंडल को मालूम हुआ कि चन्द्रकुमार रत्नपुर में है - वे रत्नपुर पहुँचे । चन्द्रकुमार से मिले। चन्द्रकुमार को जयपुर की दु:खद घटना सुनाई और महाराज का संदेश भी कह दिया । तुरंत ही चन्द्रकुमार महाराज जयसेन को मिला । जयपुर की सारी घटना सुनाई और पिताजी की इच्छानुसार जयपुर जाने की इजाजत मांगी। राजा जयसेन ने कुमार को प्रेम से इजाजत दी । भव्य विदाई दी । रत्नजड़ित तलवार भेंट 93 -

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120