Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 99
________________ राजा ने छत्रधर की शाल लेकर अपने शरीर पर लपेट ली और जंगल के रास्ते पर इधर उधर रास्ता खोजता हुआ आगे बढ़ा । इतने में एक भोलाभोला नन्हा - सा हिरन छलांगे भरता हुआ वहाँ से दौड़ा दौड़ा गया और पास की घनी झाड़ियों में घुस गया । राजा वहाँ सकपका कर खड़ा रहा । उसका घोड़ा भी थक गया था और छत्रधर भी हाँफ रहा था। हिरन के जाने के कुछ देर बाद ही एक शिकारी हाथ में धनुष पर तीर चढ़ाये हुए आ धमका । उसने चारों ओर देखा.. हिरन दिखा नहीं...न उसके कदमों के निशान...उसने घोड़े पर बैठे हुए राजा की ओर देखा और मुलायम स्वर में पूछा. भाई, इधर से एक हिरन दौड़ता हुआ गया है...क्या आपने उसे देखा? किस ओर गया वह? कहाँ भाग गया? मैं घंटे भर से उसके पीछे लगा हूँ...वह मेरा शिकार है । राजा सोचता है सच बता दूंगा तो हिरन जिन्दा बचेगा नही और झूठ बोलता हूँ तो पाप लगेगा....मेरी प्रतिज्ञा टूटेगी...इसलिये मुझे सोच समझकर कुछ रास्ता निकालना होगा । राजा ने कहा अरे भाई तु मेरा हाल पूछ रहा है? मैं रास्ता भूल गया हूँ.इसलिये यहाँ पर आ पहुँचा हूँ। शिकारी को गुस्सा आ गया'अरे पागल, मैं तुझे पूछ रहा हूँ कि वो घबराया हुआ हिरन किधर दौड़ गया?' राजा ने कहा : 'मेरा नाम हंस है भाई' शिकारी आगबबूला हो उठा : हिरन किधर गया...बोल न? राजा बोला : ‘दोस्त, मैं राजपुरी का रहनेवाला हूँ।' शिकारी झल्लाया : अरे मूर्ख...मैं तुझसे पूछता हूँ कुछ....और तू जवाब देता है कुछ....क्या बहरा हो गया है? राजा ने कहा : 'मैं तो क्षत्रिय वंश का हूँ' शिकारी चिढ़ गया....'अरे तू तो सचमुच बहरा है...' राजा बोला. .. 'तू मुझे रास्ता बता..मैं उस नगर को चला जाऊँगा' शिकारी तमतमाते हुए पैर पटककर कर 'बहरे....तू जिन्दगी भर तक बहरा ही रहना.....चिल्लाता हुआ वहाँ से चल दिया । राजा अपने रास्ते पर आगे बढ़ा । आगे उसी रास्ते पर एक साधु मुनिराज को उसने आते देखा । राजा ने दूर से ही उन्हें प्रणाम किया और रास्ता छोड़कर एक ओर खड़ा रहा । साधु मुनिराज के जाने के पश्चात् राजा आगे बढ़ा । मुनिराज पैदल चल रहे थे जबकि राजा घोड़े पर सवार था । 97

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