Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 72
________________ कर्म-ग्रंथ, आदि ग्रंथों में बताया गया है। __ तत्त्व जिज्ञासुओं की अभिरूचि इन ग्रंथों के अध्ययन मनन और चिंतन के प्रति बढ़े, इस हेतु से प्रस्तुत प्रकरण में सिर्फ पुण्य और पाप तत्त्वों को संक्षेप से बताया है। इन दो तत्त्वों के अध्ययन से यह स्पष्ट रूप से समझ में आ जाता है कि जीवन संग्राम में सुख-दुःख, हर्ष-शोक, क्रोध-क्षमा, मान-नम्रता, माया-सरलता, लोभ-उदारता आदि विविध भावनाएँ पैदा होने के पीछे क्या कारण है ? जीवन में धूप-छाँव की तरह भिन्न-भिन्न परिस्थितियों का निर्माण क्यों होता है ? ___ इन सबका एक ही जवाब है, बंधे हुये अपने शुभाशुभ कर्म के कारण ही जीवन में और जगत में ये सारी शुभाशुभ घटनाएँ घटती हैं। हमें सुख-दु:ख, अनुकूलता-प्रतिकूलता देनेवाला और कोई नहीं है, हमारे स्वयं के अच्छे और बुरे कर्म ही है और जीव खुद ही उनके (सुखादि के) कारण भूत शुभा-शुभ कर्म का कर्ता है। पुण्य तत्त्व के दो अंग :एक अंग है पुण्य क्रिया स्वरुप, दूसरा अंग है पुण्य फल स्वरुप ये दोनों परस्पर कारण-कार्य रुप हैं । पुण्य की क्रिया करने से जीव को पुण्य-शुभ फल देने वाले 42 प्रकार के शुभ कर्म बँधते हैं। 9 प्रकार की पुण्य की क्रियाएं :1. अन्न पुण्य : क्षुधा (भूख) शमन के साधनभूत अन्न का दान करना । 2. जल पुण्य :- तृषा (प्यास) शमन के साधनभूत जल का दान करना । 3. वस्त्र पुण्य :- शील रक्षा के साधनभूत वस्त्र का दान करना । 4. आसन पुण्य :- बैठने के लिए साधन रूप आसन-पाट आदि का दान करना । 5. शयन पुण्य :- सोने या रहने के साधनभूत शय्या, मकान आदि का दान करना । 6. मन पुण्य :- मन से सर्व का भला चाहना, दूसरों के हित का विचार करना । 7. वचन पुण्य :- हित, मित, सत्य वचन बोलना, गुणी के गुणों की प्रशंसा करना । 8. काया पुण्य :- काया से दूसरों की सेवा, वैयावच्च आदि करना । दूसरों के शुभ कार्य में सहायक होना । 9. नमस्कार पुण्य :- नमनीय उत्तम पुरुषों को नमन, वंदन, पूजन करना । - यह नौ प्रकार का दान अपनी पात्रता के अनुसार पुण्य (कर्म) बन्ध का कारण बनता है । सुपात्र को अन्नादि देने से उत्कृष्ट फल मिलता है । अनुकम्पा से दीन-दु:खी को अन्नादिक देने से भी पुण्य बंध होता है। संक्षेप में, जैसा पदार्थ, जैसा पात्र और जैसा भाव, वैसा पुण्य बंध होता है। - 10

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