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उचित है। चौथे चोर का यह अध्यवसाय क्रूर अवश्य है। किंतु उसमें कोमलता का अंश है। अत: यह तेजो श्या गर्भित है ।
पांचमे चोर ने कहा:शस्त्रधारी पुरुष यदि कायरतावश मैदान छोड़कर भाग रहा हो तो उसकी हत्या करने से भला हमें क्या लाभ होगा? अतः जो शस्त्रधारी पुरुष हमारा सामना करे, उसका वध करना सभी दृष्टि से उचित है | यहाँ चौथे के बजाय पाँचवे चोर के अध्यवसाय में कोमलता का पुट अधिक मात्रा में है । अतः निःसंदेह यह पद्म लेश्या का द्योतक है ।
छट्ठे चोर ने कहा: वाह, यह भी कोई बात हुई? एक तो पराये धन पर डाका डालना....चोरी करना और उसकी हत्या भी कर देना वास्तव में यह पाप ही नहीं महापाप है। ऐसा भयंकर पाप करने से हमारी क्या दुर्गति होगी । इसके बारे में भी किसी ने सोचा है? यदि धन ही चाहिये तो छीन लेना चाहिये । हत्या करने से भला क्या लाभ? छठ्ठे चोर की भावना के अध्यवसाय में अधिकाधिक प्रमाण में कोमलता के दर्शन होते हैं । यही शुक्ल लेश्या का साक्षात् प्रतीक है ।
शास्त्रों में कहा है कि मृत्यु के समय जो लेश्या होती है, आत्मा उसी लेश्या की प्रधानता वाले भव पुनर्जन्म लेती है ।
लेश्या का अल्पबहुत्व - शुक्ललेश्यावाले सबसे कम, पद्मलेश्यावाले असंख्यगुण अधिक, तेजोलेश्यावाले उसके असंख्य गुण, कापोतलेश्यावाले अनंत गुण अधिक, नीललेश्यावाले विशेषाधिक, कृष्णलेश्यावाले और विशेषाधिक होते है ।
लेश्या मे मन-वचन-काया के योग मूल कारण है। जब तक योग का सद्भाव कायम है तब तक लेश्या का भी सद्भाव होता है और योग के अभाव में लेश्या का भी अभाव है ।
B. नव तत्त्व
1. पूण्य-तत्त्व
विराट विश्व में दिखाई देती विविध विचित्रताओं का मुख्य कारण शुभाशुभ कर्म हैं । एक सुखी - एक दु:खी, एक राजा - एक रंक, एक सेठ - एक चाकर, एक रोगी - एक निरोगी, एक प्राज्ञएक अज्ञ । इन सभी द्वन्द्वों का हमें प्रत्यक्ष दर्शन हो रहा है। लेकिन इनका वास्तविक कारण क्या है? इन प्रश्नों का सही समाधान वर्तमानकालीन व्यावहारिक शिक्षण साहित्य में हमें नहीं मिलता ।
जगतकी सर्व विचित्रता के हेतुओं को समझने के लिए हमें सर्वज्ञ, श्री अरिहंत परमात्मा निर्दिष्ट कर्म सिद्धांत और आगम ग्रंथों का तलस्पर्शी अध्ययन, मनन, चिंतन करना अत्यंत आवश्यक है ।
कर्म क्या है ? वे किस तरह बँधते हैं ? उसका फल कब, किस तरह मिलता है ? और वे आत्मगुणों प्रकाश को किस तरह आच्छादित करते हैं ? उसके परिणाम से आत्मा को संसार में जन्म-मरणआधि-व्याधि और उपाधि के कैसे दर्दनाक दुःख भोगने पड़ते हैं । इन सभी का विस्तृत विवेचन
जरा,
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