Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 79
________________ व्रतधारी सदाचारी श्रावक - श्राविका की भक्तिकर एकाशना करना। इस प्रकार हर श्रावक एवं श्राविका को शक्ति अनुरुप बारह व्रतों का स्वीकार करना एक परम कर्तव्य है। D. मार्गानुसारी के 35 गुण 1. न्याय संपन्न वैभव : गृहस्थ को सर्वप्रथम स्वामी द्रोह, मित्र द्रोह, विश्वासघात तथा चोरी आदि निंदनीय प्रवृतियों का त्याग करके अपने वर्ण के अनुसार सदाचार और न्याय नीति से ही अर्जित धन-वैभव से संपन्न होना चाहिए । 2. शिष्टाचार प्रशंसक : शिष्ट पुरुष वह कहलाता है जो व्रत, तप आदि करता है, जिसे ज्ञान वृद्धों की सेवा से विशुद्ध शिक्षा मिली हो, विशेषत: जिसका आचरण सुंदर हो । 3. समान कुल और शील वाले भिन्न गोत्रीय के साथ विवाह संबंध : पिता, दादा आदि पूर्वजों के वंश के समान वंश हो, मद्य, मांस आदि दुर्व्यसनों के त्यागी हो, शीलवंत एवं सदाचारी हो एवं भिन्न गौत्री से संबंध करना चाहिए । 4. पाप भीरू : दृष्य और अदृष्य दु:ख के कारण रूप कर्मों (पापों) से डरने वाला पाप भीरू कहलाता ___है । जैसे चोरी, परदारागमन, जुआ आदि जो प्रत्यक्ष हानि पहुँचाने वाले हैं । 5. प्रसिद्ध देशाचार का पालक : सद्गृहस्थ को परंपरागत वेश-भूषा, भाषा व सात्विक भोजन आदि सहसा नहीं छोड़ने चाहिए । अत्याधिक भडकीले, अंगों का प्रदर्शन हो तथा देखने वालों को मोह व क्षोभ पैदा हो, ऐसे वस्त्रों को कभी नहीं पहनना चाहिए । अवर्णवादी न होना : अवर्णवाद का अर्थ – निंदा । सदगृहस्थ को किसी की भी निन्दा नहीं करनी चाहिए । चाहे वह व्यक्ति जघन्य हो, मध्यम हो या उत्तम हो । इससे सामने वाले के मन में घृणा, द्वेष, वैर-विरोध तो पैदा होता ही है, ऐसा करने वाला व्यक्ति नीच गोत्र कर्म भी बान्धता है । 7. सद्गृहस्थ के रहने का स्थान : जो मकान बहुत द्वारवाला न हो, ज्यादा ऊँचा न हो, एकदम खुला भी न हो, चोर, डाकुओं का भय न हो एवं पडोसी अच्छे हो ऐसे मकान में रहना चाहिए । 8. सदाचारी के साथ संगति : सत्संग का बड़ा महत्व है । जो इस लोक और परलोक में हितकर प्रवृति करते हो, उन्हीं की संगती अच्छी मानी गयी है । खल, ठग, कपटी, भाट, क्रूर, नट आदि की संगति से शील का नाश होता है । नीतिकारों ने कहा है - यदि तुम सज्जन मनुष्यों की संगति करोगे तो तुम्हारा भविष्य सुधर जाएगा और दुर्जन का संग करोगे तो भविष्य नष्ट हो जाएगा | A man is known by the company which he keeps. माता-पिता का पूजक : उत्तम पुरुष वही माना जाता है जो माता-पिता को नमस्कार करता हो । इनको आत्म हितकारी धर्मानुष्ठान में सहाय करता हो, उनका सत्कार सम्मान करता हो तथा उनकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करता हो । मनुस्मृति में कहा है कि दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्य = 77

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