Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 33
________________ आ + आचार्य का आ = आ आ + उपाध्याय का उ = ओ ओ + मुनि (मुनि = म् + उ + न् + इ) (साधु) का म् = ओम् = , (ॐ) प्रश्न: पंच परमेष्ठि से पंचतीर्थ को किस प्रकार नमस्कार होता है ? उत्तर: 1. अरिहंत के अ से अष्टापदजी तीर्थ 2. सिद्ध के सि से सिद्धाचलजी तीर्थ 3. आचार्य के आ से आबु तीर्थ । 4. उपध्याय के उ से उज्जयंतगिरि (गिरनारजी) तीर्थ 5. साधु के स से सम्मेतशिखरजी तीर्थ उपरोक्त इस प्रकार से पाँच तीर्थों को भी नमस्कार होता है। प्रश्न: नवकार मंत्र पढने या गिनने का अधिकार कब मिलता है ? उत्तर: उपधान तप के प्रथम अढारिया (18 दिन) करने से नवकार मंत्र पढने या गिनने का अधिकार मिलता है। प्रश्न: तो फिर कई लोग छोटे बच्चों से लेकर वृद्ध तक बिना अढारिया किए ही नवकार मंत्र क्यों गिनते है ? उत्तर: शक्ति या अनुकूलता नहीं होने के कारण अढारिया नही करने से हालांकि उन्हें अभी तक नवकार मंत्र पढने या गिनने का अधिकार हासिल नहीं हुआ है लेकिन भविष्य में वे अढारिया (उपधान) करके नवकार मंत्र गिनने का अधिकार प्राप्त कर लेंगे ऐसी आशा से, आराधना से वंचित न रह जाएं इसलिए, उन्हें नवकार मंत्र पढने और गिनने की छूट जित-आचार से दी जाती है । अत: शक्ति अनुकूलता होने पर शीघ्र ही उपधान (शक्ति हो तो पूरा 47 दिन का और न हो तो कम से कम अढारिया) अवश्य कर लेना चाहिए। प्रश्न: नवकार के प्रत्येक अक्षर पर कितनी विद्याएँ है? उत्तर: नवकार के प्रत्येक अक्षर पर 1008 विद्याएँ रही हुई है। प्रश्न: नवकार का एक अक्षर, एक पद, एक नवकार या 108 नवकार गिनने से कितना पाप नाश होता है ? उत्तर: नवकार का एक अक्षर गिनने से सात सागरोपम, नवकार का एक पद गिनने से 50 सागरोपम, एक नवकार गिनने से 500 सागरोपम और 108 नवकार गिनने से 54000 सागरोपम नरक में रहकर जितना दुःख सहन करे उतने पाप कर्मों का नाश होता है । इसलिए रोज कम से कम 108 नवकार अवश्य गिनने चाहिए। प्रश्न: 108 नवकारमंत्र का जाप किस प्रकार करना चाहिए ? 31 =

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