Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 38
________________ बंध जैसी स्थिति में हो वैसी स्थिति में रखें । बहराने वाला व्यक्ति कच्चा पानी, बिजली की रोशनी, हरी वनस्पति, गैस एवं मिर्च - इत्यादि मसालों का डिब्बा (क्योंकि उसमें राई, जीरा, कच्चा नमक इत्यादि सचित वस्तुएँ होती है ।) इत्यादि स्पर्श न करें । 4. कोई वस्तु नीचे न गिरे, उसकी बूँद भी बाहर न गिरे या पात्र बिगडे नहीं इस प्रकार बहराना चाहिए। गोचरी के समय घर के दरवाजे खुले रखें । 5. 6. 7. घर का दरवाजा बंद हो तो, खोलने के लिए साथ में आया हुआ श्रावक घंटी नहीं बजाए । घर में जो भोजन तैयार हो, वह पहले से ही इस प्रकार रखा हुआ होना चाहिए, कि उसे कच्चा पानी, हरी, वनस्पति, फ्रिज, कच्चे पानी का मटका, अग्नि इत्यादि कुछ भी स्पर्श करता हुआ न हो। रसोई में जो जो वस्तुएँ बनी हुई हो, वे सभी याद करके बहराने के लिए विनंती करे । उनके सिवाय औषधि रुप सूंठ, शक्कर, पीपरीमूल, बलवन (भट्टे में पकाया हुआ नमक) इत्यादि की भी विनंती करे । 3. 8. गोचरी बहराने में कभी भी गच्छ का, पक्ष का, साधु या साध्वी का भेद न रखें। सबको एक भाव सेउमंग से बहराना चाहिए । 10. गोचरी के अतिरिक्त वस्त्र, पात्र - दवाई इत्यादि भी विनंती करके आवश्यकता के अनुसार बहराना चाहिए। 9. गोचरी बहराने से लाभ 1. पूर्वभव में साधुओं को उत्तम वस्त्र बहराने से श्रीधर नाम का व्यक्ति राजा बना। 500 गायों का वह स्वामी बना । गुरु से अपने पूर्वभव सुनकर साधुओं को दान देकर देवलोक में गया। वहाँ से च्यवन कर राजा बनकर मोक्ष गमन करेगा। 2. चंद्र नामक पुत्र ने पूर्वभव में साधुओं को पाँच लड्डू वहोराए थे। इससे दूसरे भव में पाँच करोड का स्वामी बना जो धन सेठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह सेठ पाँचवे भव में मोक्ष जाएगा । 3. गोचरी :- सुपात्रदान समकित प्राप्ति का कारण है। जिस प्रकार ऋषभदेव भगवान के जीव ने धन्नासार्थवाह के भव में मुनि को गोचरी बहराकर समकित प्राप्त किया था, इसी प्रकार महावीर स्वामी के जीव ने नयसार के भव में जैन नहीं होने पर भी जंगल में दान देने की भावना रखते हुए भुनि को देखकर अत्यंत हर्ष व्यक्त किया। मुनि को गोचरी बहराकर ही स्वयं ने भोजन किया, जिससे उसने समकित प्राप्त किया । 36

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