Book Title: Jain Tattva Darshan Part 07
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 47
________________ है मानव या पशु ? 4. होटल में क्यों नहीं खाना चाहिए ?: होटल में खाने से भक्ष्याभक्ष्य, पेय-अपेय अर्थात् खाने-पीने योग्य क्या और न खाने-पीने योग्य क्या है ? इसका विवेक नहीं कर सकते । अनेक शारीरिक हानियाँ होती हैं, धन का दुरुपयोग होता है, शरीर और मन का स्वास्थ्य बिगडता है । होटल में तुच्छ व्यक्तियों की बातें सुनने और देखने से मन विकृत होता है । अन्य व्यसनों के शिकार बनना सरल हो जाता है । अभक्ष्य वस्तु, पासी, तुच्छ, अपवित्र वस्तुएँ खाने-पीने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । विचारों में विकृति आती है। समाज का पैसा निरर्थक खान-पान के पीछे खर्च होता है। समाज की उन्नति के लिए धन की बचत भी नहीं हे सकती। व्यक्ति जैसा आहार करता है, तदनुसार उसके विचारों का निर्माण होता है । केवल कमाई करने की दृष्टि से निर्मित होटल आपके स्वास्थ्य और पवित्र जीवन को नष्ट कर देंगी । अत: उनका मोह छोडकर आज ही संकल्प किजीए, कि हम इन गंदे अपवित्र आहार – पानी, चाय-नमकीन, मिठाई आदि परोसने वाली होटलों में न खाएँगे, न पीएँगे और न ही जाएँगे । 5. होटल अर्थात् क्या ?: 1. घर की शुद्ध रसोई छोडकर अशुद्ध पदार्थों के भक्षण का फेशनेबल रसोईगृह 2. नीची जाति के लोगों की जीभ से चाटे हुए बर्तनों में खाने का आनंद? देनेवाला स्थल 3. सायन्स की दृष्टि से प्रत्येक रोग के कीटाणु अपने शरीर में पधराने का गोडाउन । 4. अनेक पैसों का अपव्यय करके गंदगी को पेट में निमंत्रण देकर स्थापित करने का गटर । विदेश की एक मेकडोनल्ड नामक रेस्टोरेंट में से एक व्यक्ति सलाद खरीदकर लाया । उसे खाने से दो स्त्रियाँ गंभीर रोग ग्रस्त हुई । जाँच करने पर उस सलाद में से मरा हुआ चुहा निकला । उनके पति ने उस मेकडोनल्ड होटल पर 17 लाख डॉलर का जुर्माना किया। विदेश से भारत में भी यह रेस्टोरेंट आ चुकी है, सावधान बन जाना । (गुजरात समाचार 28/10/06) अभक्ष्य वस्तु के साथ जैन शब्द से सावधान : लॉरी वालों के पास भी लगभग सभी वस्तुएँ अभक्ष्य, बासी आदि होती हैं, अत: वहाँ से भी ये वस्तुएँ नहीं खानी चाहिए । वे शरीर के लिए भी हानिकारक होती हैं । ये लोग जैनों को आकर्षित करने के लिए बानगी के आगे जैन शब्द जोड देते है और धर्मी आत्माओं को भ्रम में डालते हैं । अत: बच्चों ! आप सावधान रहना, क्योंकि ये वस्तुएँ जैन शब्द लगाने मात्र से खाद्य नहीं बन जाती जैसे... जैन पाऊभाजी: इसमें पाऊ की बनावट में काल बीत चुका हो ऐसा सडाँ हुआ बाजारु मेदा-खमीर बासी रहने से, उसमें असंख्य त्रस जीवों की उत्पत्ति होती है। ऐसे पाऊ का भक्षण करने में उन जीवों की हिंसा का दोष लगता है। पाऊ खुद भी रोटी के समान अगले दिन बासी हो जाने से अभक्ष्य ही है। जैन आईस्क्रीम : जो जिलेटिन, केक, बर्फ से बनती है वह अभक्ष्य है। इसी प्रकार जैन समोसा, जैन कचौरी, जैन खमण आदि में भी मेदे की बासी पट्ट, कालातीत मेदा और खमण के लिए रात-बासी कच्ची छाछ का बोला, फाल्गुन शुक्ला 14 चतुर्दशी के पश्चात् आठ माह तक हरे धनिये, पत्ता गोभी आदि - - 45

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